मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जितनी दुर्गति हुई है उतनी शायद कभी नहीं हुई। बमुश्किल कांग्रेस एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर पाई वह भी प्रदेश में सबसे कम अंतर से। प्रदेश कांग्रेस के सभी दिग्गज उम्मीदवार मोदी की सुनामी में बह गए फिर चाहे वो चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह हों, महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, दिग्गज अजय सिंह राहुल हों, अरुण यादव हों, कांतिलाल भूरिया हों या मीनाक्षी नटराजन हों। अब सवाल ये उठता है कि पांच महीने पहले विधानसभा चुनावों में बढ़िया प्रदर्शन करके सरकार बनाने वाली कांग्रेस क्या अपनी प्रदेश सरकार के काम काज को जनता तक नहीं पहुंचा पाई या विधानसभा चुनाव की जीत एक संयोग मात्र थी। और सबसे बड़ा सवाल ये कि MP में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की दुर्गति की जिम्मेदारी का ठीकरा किस पर फोड़ना चाहिए? क्या ये उम्मीदवारों की व्यक्तिगत हार थी और उन्हीं की गलती थी या प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्हें इस हार की जिम्मेदारी लेना चाहिए। अगर देखा जाए तो पूरे लोकसभा चुनावों में स्टार प्रचारक के रूप में कमलनाथ ने ही सबसे ज्यादा सीटों का दौरा किया था। वरिष्ठ नेता गोविंद गोयल भी ट्वीट करके सवाल उठा चुके हैं कि कमलनाथ से रिपोर्ट ली जानी चाहिए। शनिवार को मंत्रिमंडल की बैठक होने वाली है और माना जा रहा है कि हार का ठीकरा मंत्रियों पर भी फूट सकता है। क्योंकि प्रदेश के लगभग सभी मंत्रियों के विधानसभा इलाकों में कांग्रेस उम्मीदवारों की हार हुई है। माना ये भी जा रहा है कि कई मंत्रियों से इस्तीफे मांगे जा सकते हैं वहीं ये भी कहा जा रहा है कि परसों होने वाली विधायक दल की बैठक में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायक हंगामा कर सकते हैं। अब देखना है कि एमपी की करारी हार के बाद क्या होता है क्या कमलनाथ पीसीसी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हैं और कितने मंत्रियों पर हार का ठीकरा फोड़कर निपटाया जाता है।