संगमरमरी पत्थरों से बना आगरा का ताजमहल दुनिया भर में प्रेम की निशानी माना जाता है। बादशाह शाहजहां और मुमताज महल के प्रेम की निशानी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताजमहल पहले आगरा में नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर में बनाया जाने वाला था? जी हां, शाहजहां की बेगम मुमताज महल की मौत अपनी 14 वीं संतान को जन्म देते वक्त 7 जून 1631 को बुरहानपुर के शाही महल में हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक शाहजहां की बेगम मुमताज महल ईरान की रहने वाली थीं और दिल्ली से शाहजहां के साथ बुरहानपुर में आकर बसी थीं। मुमताज महल का असली नाम अर्जुमंद बानो था। अर्जुमंद बानो को मुमताज महल नाम उनके ससुर मुगल सम्राट जहांगीर ने दिया था। बुरहानपुर में मुमताज की मौत के बाद उनकी लाश को आहूखाना ले जाया गया। आहूखाना के पास पाइन बाग में मुमताज की लाश को एक विशेष ताबूत में रखा गया। कहा जाता है कि इस ताबूत को विशेष लेप और रसायनों से संरक्षित किया गया था। लोगों का तो ये भी कहना है कि मुमताज महल की असली कब्र बुरहानपुर में ही है और ताजमहल में सिर्फ उसकी नकल है। मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां ने उसकी याद में एक मकबरा बनाने का निर्णय किया और इसके लिए बुरहानपुर में ही ताप्ती नदी के किनारी जगह भी तय कर ली गई। छह महीने तक तत्कालीन वास्तुविदों और कारीगरों ने बुरहानपुर में आबोहवा और मिट्टी का परीक्षण किया लेकिन यहां की आबोहवा में नमी और मिट्टी में दीमक होने के कारण मकबरा यहां बनाने का फैसला बदलना पड़ा, इसके अलावा ताप्ती का पाट कम चौड़ा होना और बार बार बाढ़ आने की समस्या के अलावा राजस्थान के मकराना से संगमरमर लाने में आने वाली कठिनाई को भी फैसला बदलने का कारण बताया जाता है। बाद में आगरा में यमुना के किनारे ताजमहल बनवाया गया और ताबूत में सुरक्षित रखी मुमताज की लाश को आगरा ले जाया गया। बुरहानपुर में आज भी मुमताज महल की याद में मुमताज फेस्टिवल मनाया जाता है। 7 जून को मुमताज महल की डेथ एनिवर्सरी मनाई जाती है वहीं इस साल 16 और 17 जून को 50 वां दो दिवसीय मुमताज फेस्टिवल मनाया जा रहा है।