भारत में तीन तलाक के खिलाफ बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हो जाने को मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ी जीत बताया जा रहा है। हालांकि इस बिल के पास होने और तीन तलाक का मुद्दा गरमाने पर एक और पुराने मामला का जिक्र होता है, ये मामला है शाह बानो का मामला। इंदौर की रहने वाली शाह बानो के मामले को भी मुस्लिम महिलाओं की हक की लड़ाई से जोड़कर देखा जाता है। हालांकि तीन तलाक के मामले में मुस्लिम महिलाओं को जीत मिली है लेकिन शाह बानो को जीतकर भी हार का सामना करना पड़ा था और मुस्लिम संगठनों के दबाव में तत्कालीन राजीव गांधी का सरकार ने शाहबानो को सुप्रीम कोर्ट से मिले न्याय का फैसला पलट दिया था और इसके खिलाफ कानून बना दिया था। सबसे पहले जानते हैं कि आखिर कौन थीं शाह बानों और फिर जानेंगे कि क्या था शाह बानो का केस
शाहबानो एक साधारण मुस्लिम महिला थीं जिनका निकाह 1932 में इंदौर के वकील मोहम्मद अहमद खान से हुआ था। इस निकाह से शाहबानो के 5 बच्चे हुए। निकाह के 14 साल बाद मोहम्मद अहमद खान ने दूसरा निकाह कर लिया। हालांकि दूसरे निकाह के बाद भी शाहबानो मोहम्मद अहमद खान के साथ रहती थीं लेकिन शाहबानो और मोहम्मद अहमद खान की दूसरी बीवी के बीच झगड़े के चलते मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को अपने घर से निकाल दिया। इसके बाद शाह बानो ने गुज़ारा भत्ते के लिए कोर्ट की शरण ली लेकिन 1978 में 62 साल की उम्र में मोहम्मद अहमद खान ने शाहबानो को तलाक दे दिया। ये मामला सीआरपीसी की धारा 125 से जुड़ा हुआ है।