क्या है राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद? जानिए इसका इतिहास

देश में धार्मिक और राजनैतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में मंगलवार 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि इसे देश में दो धर्मों के वर्चस्व और अस्तित्व के साथ साथ धार्मिक भावनाओं के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन अगर कोर्ट में कानूनी और तकनीकी रूप से देखा जाए तो यह महज दो पक्षों के बीच एक जमीन के मालिकाना हक का विवाद है। हिंदूओं का कहना है कि अयोध्या की विवादित जमीन भगवान राम की जन्मस्थान है वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि विवादित स्थान पर बाबरी मस्जिद थी। इतिहास के झरोखे से देखें तो जानकारी के मुताबिक सन 1527 में मुगल सम्राट बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को हराने के बाद अपने जनरल मीर बांकी को इलाके का वायसराय नियुक्त बनाया था और मीर बांकी ने अयोध्या में साल 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। हिंदुओं का कहना है कि मीर बांकी ने भगवान राम के जन्मस्थान पर बने मंदिर को नष्ट करके बाबरी मस्जित बनवाई थी। कई सालों के बाद अंग्रेजी शासन काल के दौरान हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावा करना शुरू कर दिया जबकि मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद होने का दावा किया।

1853 में विवादित जमीन को लेकर पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजों ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी, लेकिन मुसलमानों को ढांचे के भीतर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की परमीशन दे दी। 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में विवादित स्थान पर मंदिर बनाने की मांग करते हुए याचिका दायर की। लेकिन तत्कालीन जज पंडित हरिकृष्ण ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि यह चबूतरा पहले से मौजूद मस्जिद के इतना करीब है कि इस पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसके बाद विवादित स्थान पर यथास्थिति बनी रही। आज़ादी के बाद

23 दिसंबर 1949 को भगवान राम की मूर्तियां ढांचे के भीतर पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों का आरोप था कि रात में चुपचाप मूर्तियां ढांचे के भीतर रखी गई हैं। प्रधानमंत्री नेहरू के आदेश के बाद यूपी सरकार ने उस वक्त के मैजिस्ट्रेट केके नायर को विवादित स्थान से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया लेकिन नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से आदेश को टाल दिया।
सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया जिसके बाद 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद नामक शख्स ने फैजाबाद के सिविल जज के सामने अर्जी दाखिल कर यहां पूजा की इजाजत मांगी थी जिसकी सिविल जज एन. एन. चंदा ने मंजूरी दे दी थी वही मुसलमानों ने भी इस फैसले के खिलाफ अर्जी दायर की। यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया गया। 06 दिसंबर 1992 को देश भर से आए लाखों कारसेवकों ने अयोध्या का विवादित ढांचा गिरा दिया। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए, जिनमें करीब 2,000 लोग मारे गए। विवादित ढांचे के विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
2003 में हाई कोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरात्तव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। वर्ष 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायल की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गयी। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था. जिसमें राम लला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया. दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इलाहाबाद हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया। तब से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला लगातार लंबित बना हुआ है। अब 6 अगस्त से मामले की रोजाना सुनवाई के निर्देश दिए गए हैं। मध्यस्थता के जरिए विवाद का कोई हल निकालने का प्रयास असफल होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।

(Visited 109 times, 1 visits today)

You might be interested in

LEAVE YOUR COMMENT