बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना, हमीं सो गए दास्तां कहते कहते

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन राजनीति के एक ऐसे युग का अंत है जिसमें मूल्यों और सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया जाता था। तमाम विरोधाभासों के बावजूद बाबूलाल गौर ने बीजेपी का दामन नहीं छोड़ा। हालांकि आखिरी के कुछ दिनों में टिकट कटने के बाद ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि बाबूलाल गौर बीजेपी छोड़कर नई पार्टी बना सकते हैं या कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य रहे बाबूलाल गौर अंत तक बीजेपी में ही रहे। कुछ लोग बाबूलाल गौर को राजनीति का एक ऐसा स्कूल मानते हैं जिनसे आजकल के नेताओं को सीख लेने की जरूरत है। गौर ने कई बार पार्टी में हो रही गलत बातों के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। गौर के बीजेपी के नेताओं के अलावा कांग्रेस सहित कई पार्टियों के नेताओं से अच्छे संबंध रहे। ये भी कहा जाता है कि गौर ने हमेशा अपने मन की सुनी और वही किया जो उन्हें अच्छा लगा। सियासी गलियारों में कहा जाता है कि उमा भारती ने जब सीएम का पद छोड़ा था और बाबूलाल गौर को सीएम बनाया गया था तो उमा भारती ने गंगाजल लेकर गौर को शपथ दिलाई थी कि जब वो वापस आएंगी तो गौर सीएम पद छोड़ देंगे लेकिन बाद में गौर ने उमा के कहने पर सीएम का पद नहीं छोड़ा। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब गौर का टिकट काटा गया तो गौर ने उग्र तेवर दिखाए और आखिरकार पार्टी को उनकी बहू को टिकट देने पर राजी होना पड़ा। पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं के साथ भी गौर खुलकर मिलते रहे बल्कि उन्होंने कांग्रेस के भी कई नेताओं को अपने बंगले पर बुलाकर खाना खिलाया और इसके लिए पार्टी की नाराजगी की भी कोई परवाह नहीं की। गौर ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ भी कई बार बयानबाजी की लेकिन पार्टी में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की हिम्मत किसी की नहीं थी। एकदम निचले स्तर से शुरूआत करके मुख्यमंत्री जैसे सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाले गौर का रुतबा और ठसक अलग ही था जिसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है। 90 की उम्र तक पहुंच चुके गौर की फिटनेस भी काफी अच्छी रही। गौर से कम उम्र वाले कई नेता इस दुनिया से विदा हो गए लेकिन गौर ने राजनीति की लंबी पारी खेली और बीजेपी ही नहीं दूसरी पार्टियों के नेता भी उनसे सियासी गुर सीखने के लिए उनके पास आते रहते थे।

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