झाबुआ विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव सरकार होने के बावजूद कांग्रेस के लिए आसान नजर नहीं आता. वजह ये है कि इस सीट पर प्रत्याशी चयन को लेकर काग्रेस अब भी असमंजस में है. हो सकता है एक बार फिर कांग्रेस गुजबाजी या भीतराघात की शिकार हो जाए. पिछली बार टिकट न मिलने से जेवियर मेड़ा ने बगावत कर दी थी. जिसके बाद वो निर्दलीय लड़े और पैंतीस हजार वोट भी हासिल कर सके. कहा जा सकता है कि मेड़ा ने ही विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का खेल बिगाड़ा. ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है. दूसरी तरफ खुद कांतिलाल भूरिया भी इस चुनाव में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. लेकिन लोकसभा में मिली हार के बाद कांग्रेस उन्हें टिकट नहीं देना चाहती. अब इन दोनों नेताओं के बीच कांग्रेस कैसे प्रत्याशी का चुनाव करती है ये देखना बेहद दिलचस्प होगा. क्योंकि ये वैसे तो कोई आसान काम है नहीं. दोनों ही झाबुआ के कद्दावर नेता हैं. किसी एक को अनदेखा कर दूसरे को टिकट देने का फैसला पार्टी पर भारी पड़ सकता है. यानि कांग्रेस के लिए आगे कुंआ है तो पीछे खाई है. न्यूज लाइव एमपी डेस्क.