ज्योतिरादित्य सिंधिया को फिलहाल हर तरफ से नाउम्मीदी ही हाथ लगी है. पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन सिंधिया का करिश्मा यहां से पार्टी को सिर्फ एक ही सीट दिलवा सका. पश्चिमी यूपी की बात तो छोड़िए सिंधिया खुद अपनी संसदीय सीट नहीं बचा सके. इसके बाद मध्यप्रदेश की पॉलिटिक्स में भी वो तकरीबन साइड लाइन ही हैं. बार बार उन्हें प्रदेश का अध्यक्ष बनाने की मांग उठती रही है लेकिन हरी झंडी नहीं मिली है. उसके बदले उन्हें महाराष्ट्र स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरपर्सन बना कर वापस प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिया गया. वो भी उस काम के लिए जो सिंधिया अब तक मध्यप्रदेश में नहीं कर सके हैं. सिंधिया को महाराष्ट्र में चुनाव के लिए सही उम्मीदवार चुनने के साथ साथ महाराष्ट्र कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी को खत्म करने की जिम्मेदारी भी दी गई है. अब ये काम सिंधिया अपने प्रदेश यानि कि एमपी में तो कर नहीं सके. जहां कभी भी सिंधिया समर्थकों का विद्रोह साफ नजर आने लगता है. ऐसे में जब सिंधिया अपने घर को ही सादने में अब तक पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं तो दूसरे प्रदेश में जाकर वो किस तरह पार्टी को एकजुट करने का करिश्मा दिखाएंगे. ये देखना दिलचस्प होगा.