क्या सिंधिया परिवार में इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे माधव राव सिंधिया कि आज पुण्यतिथि है. माधव राव सिंधिया कांग्रेस के ऐसे नेता रहे जिन्होंने पार्टी की खातिर राजमहल के ऐशोआराम का भी त्याग कर दिया. अपनी ही मां से बगावत भी की. लेकिन पार्टी में जिस पद के वो हकदार थे वो हर बार उनको मिलते मिलते रह गया. 1989 में चुरहट कांड के बाद अर्जुन सिंह ने इस्तीफा दिया तो राजीव गांधी की माधवराव सिंधिया को सीएम बनाना चाहते थे. लेकिन बाजी मार गए मोतीलाल वोरा. उसके बाद 1993 में दोबारा सीएम बनने का मौका आया उस वक्त फिर पांसे पलट गए और अर्जुन सिंह गुट के दिग्विजय सिंह सीएम बने. ये दूसरा मौका था जब माधव राव सिंधिया मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए.
मध्यप्रदेश के आज के परिपेक्ष्य में ऐसा लगता है सिंधिया राजघरान में इतिहास खुद को दोहरा रहा है. विधानसभा चुनाव के वक्त गुटबाजी को ताक पर रखकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जीत के लिए जी तोड़ मेहनत की. कांग्रेस जीते भी और जीत का सेहरा सजा कमलनाथ के सिर. इसके बाद उम्मीद यही थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के अध्यक्ष घोषित होंगे. लेकिन जितनी बार सिंधिया इस पद के करीब पहुंचते हैं उतनी बार ये मौका उनसे दूर सरक जाता है. एक बार फिर महाराष्ट्र चुनाव की जिम्मेदारी सौंप कर उन्हें इस पद से दूर कर दिया गया है. जिसे देख करऐसा ही लगता है कि सिंधिया परिवार में इतिहास खुद को दोहरा रहा है.

(Visited 1184 times, 1 visits today)

You might be interested in

LEAVE YOUR COMMENT