वो तीन शब्द जो बने इंदिरा के कत्ल की वजह

31 अक्टूबर की तारीख आज से पैंतीस साल पहले भी आई थी. लेकिन वो सुबह आज की सुबह से कुछ अलग थी. पैंतीस साल पहले जब ये तारीख आई तो इतिहास के पन्नों से खामोशी से गुजर न सकी. दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास पर तो जैसे वहीं थम कर रह गया. ये वही दिन था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उन्हीं के गनमैन ने गोलियों से छलनी कर दिया था. एक के बाद एक अठठ्इस गोलियां इंदिराजी को दाग दी गईं.
कत्ल की वजह बताई गई ऑपरेशन ब्लू स्टार. जो इंदिरा के दृढ़ इरादों का सबब था. पंजाब में खालिस्तान की मांग लगातार जोर पकड़ रही थी. एक तरफ पाकिस्तान था जो इसके जरिए बांगलादेश का बदला लेना चाहता था. दूसरी तरफ कश्मीर जो लगातार आजाद होने की कवायद में लगा हुआ था. इन दोनों की सरहदों से लगा हुआ पंजाब. जो उस वक्त खालिस्तान के लिए उबल रहा था. उनका नेता था जनरैल सिंह भिंडरावाला. जब भिंडरवाला को पकड़ने की कोशिशें तेज हो गईं तब भिंडरवाला ने अपने साथियों के साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में डेरा डाल लिया. हथियारों समेत. सोच ये थी कि उनके धार्मिक स्थल पर कोई हमला नहीं होगा. और अगर हुआ भी विद्रोह की लहर पूरे पंजाब में फैल जाएगी. दोनों ही सूरतों में जीत उसी की होनी थी. लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सख्त इरादों से वो भी वाकिफ नहीं था. जिन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार पर फैसला लेने में देर नहीं की. देखते ही देखते सेना स्वर्ण मंदिर में मार्च कर रही थी. भिंडरवाला अपने पांच सौ साथियों के साथ मारा जा चुका था. कुछ समय बाद ऐसा लगा कि खालिस्तान की आग बुझ चुकी है. पंजाब अब शांत है. पर ये कोई नहीं जानता था कि पंजाब में बुझी खालिस्तान का आग कुछ दिलों में अब भी सुलग रही है. जिन्हें खालिस्तान भले ही न चाहिए हो लेकिन स्वर्ण मंदिर में ब्लूस्टार की नाराजगी अब भी खत्म नहीं हुई है.
उस वक्त इंदिराजी के दो सुरक्षा गार्ड हुआ करते थे. बेअंत सिंह और सतवंत सिंह. बेअंत सिंह लंबे समय से इंदिरा के साथ थे. कई विदेश यात्राओं पर भी वो इंदिरा के सुरक्षा गार्ड रहे. तकरीबन नौ साल लंबा वक्त उन्होंने इंदिरा गांधी की सुरक्षा करते हुए बिता दिया. इस बीच इंदिरा को रॉ ने ताकीद भी किया कि अपने बंगले से सिख गार्ड्स को हटा दें. लेकिन इंदिरा ने इस राय पर सिर्फ एक सवाल किया सवाल ये कि आर नॉट वी सेक्यूलर यानि क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं है. इंदिरा भी कहां जानती थीं कि इस सवाल का जवाब उन्हें बेअंत सिंह ही देंगे. जिस पर इंदिरा ने आंख मूंद कर भरोसा किया वही हमेशा हमेशा के लिए उन्हें मौत की नींद सुलाने की तैयारी कर रहा है. शायद जानती भी तो भी उसे हटा न पातीं. कुछ ऐसे ही मिट्टी की बनी हुई थीं इंदिरा.
फिर वो दिन भी आया जब इंदिरा तैयार हो कर अपने घर से निकलने वाली थीं. वो दिन उनके लिए काफी व्यस्त था. पत्रकार पीटर उस्तीनोव उनके इंटरव्यू के लिए अपॉइन्टमेंट ले चुके थे. उसके बाद उन्हें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स केलेघन और मिजोरम के एक नेता से मिलना था. शाम का समय ब्रिटेन की राजकुमारी एन के लिए फिक्स था जिसे वो डिनर का इंविटेशन दे चुकी थीं. पर इंदिरा क्या जानती थीं कि उनका भागता दौड़ता वक्त बहुत जल्द थमने वाला है. जिस केसरिया रंग की साड़ी को पहन कर वो घर से बाहर निकल रही हैं उस पर उन्हें के लहू का रंग चढ़ने वाला है. उनके अपने विश्वासपात्र सुरक्षा गार्ड ही उनके दुश्मन बन चुके हैं. वो अपने अमले के साथ बंगले से बाहर निकली. गेट तक पहुंची ही थीं और रोज की तरह नमस्कार करने वाले गार्ड बेअंत सिंह को नमस्ते करने के लिए हाथ उठाया ही था. लेकिन आज बेअंत का अंदाज बदला हुआ था. दोनों हाथ जोड़ने की जगह उसने इंदिराजी की तरफ एक हाथ बढ़ाया. उस हाथ में बंदूक थी. जिससे एक के बाद एक उसने तीन गोलियां इंदिराजी पर दाग दी. बगल, सीने और कमर में इंदिरा को गोलियां लग चुकी थीं. लेकिन जान अब भी बाकी थी. बेअंत की आवाज पर सतवंत सिंह इंदिरा गांधी के नजदीक पहुंचे और एक के बाद एक 25 गोलियां इंदिरा के शरीर में उतार दी.
वो इंटरव्यू, वो मुलाकात और वो भोज सब कुछ अधूरा रह गया. इस घटना के तकरीबन चार घंटे बाद डॉक्टर्स ने वो खबर सुना दी. जिसे शायद उस दिन देश का कोई बाशिंदा नहीं सुनना चाहता था. लेकिन सच वही था. जिस सेक्यूलरिज्म पर भरोसा करके इंदिरा ने अपने सुरक्षा गार्ड नहीं बदले. उन गार्ड्स ने उसी भरोसा का बेरहमी से कत्ल कर दिया. वो देश की ऐसी इकलौती प्रधानमंत्री थी जिन्हें इस पद पर रहते हुए, उन्हीं के बंगले में कत्ल कर दिया गया. पूरा देश स्तब्ध था. आज भी है. जब जब इस घटना की याद आती है देश की धड़कने उसी तरह थमती हैं. ये भी क्या ताज्जुब की बात है कि इस घटना से एक दिन पहले ही इंदिरा ने अपने भाषण में कहा था कि आज मैं आपके बीच हूं कल शायद न रहूं मेरा लंबा जीवन रहा, और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में बिताया और आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी. जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा. अब ऐसा लगता है कि इंदिरा भाषण नहीं दे रही थीं बल्कि आने वाले अगले ही दिन की सच्चाई बता रही थीं. लोग तब भी हैरान थे. और आज भी उस वाक्ये को सुनते हैं तो हैरान रह जाते हैं.

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