ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन कर तो ली. लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब न सिर्फ कांग्रेस बल्कि खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी जानना चाहते होंगे. सिंधिया ने कांग्रेस में तकरीबन दो दशक का वक्त बिताया है ऐसे में बीजेपी को समझना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि बीजेपी कांग्रेस सिर्फ कहने के लिए विरोधी दल नहीं हैं बल्कि दोनों की सोच, अनुशासन और भीतरी तंत्र में भी जमीन आसमान का अंतर है. सिंधिया जब जब भोपाल आए उनके समर्थक यहां मेला सा लगा लेते थे. कांग्रेस कार्यालय के खिड़की दरवाजे तक सिंधिया समर्थकों के उत्साह के गवाह बन चुके हैं. जो अपने नेता की एक झलक पाने के लिए दरवाजे तक तोड़ देते थे. क्या सिंधिया समर्थकों का ये उत्साह बीजेपी में भी नजर आ सकेगा. क्योंकि बीजेपी का अनुशासन इसकी अनुमति नहीं देता है. दूसरी बात ये कि चंबल के मामले में कांग्रेस में सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया की सुनी जाती थी. जिसे महल ने नहीं चुना वो चंबल के इलाके में कांग्रेस के किसी पद पर कामयाब नहीं हो सका. क्या इतना ही फ्री हैंड चंबल के मामले मे बीजेपी में मिल सकेगा. शायद नहीं क्योंकि खुद बीजेपी में ही चंबल क्षेत्र से आने वाले कई बड़े नेता हैं जिनमें नरोत्तम मिश्रा, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेता है. सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया भी वहां अपना अलग दबदबा रखती हैं. ऐसे में सिर्फ सिंधिया की ही चले ऐसा नहीं हो सकेगा. तीसरा बड़ा कारण ये कि बीजेपी ने गुटबाजी को कंट्रोल करने और कार्यकर्ताओं की बात सुनने और सुनाने के लिए मजबूरत रिस्पॉन्स सिस्टम डेवलेप किया है. अनुशासन भी ऐसा है कि हर नेता पार्टी लाइन को फॉलो करता है. लेकिन कांग्रेस में गुटबाजी अब भी हावी है. आलाकमान के कहने के बाद भी समर्थक तब ही आगे बढ़ते हैं जब उनका अपना नेता इशारा करता है. ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी की परंपरा को समझने में कितना वक्त लेंगे और समझ गए तो क्या बीजेपी उनके अनुसार और वो खुद को बीजेपी के अनुसार ढाल सकेंगे. क्योंकि यही समय तय करेगा कि सिंधिया बीजेपी में कब तक एक मुकाम हासिल करते हैं और कितने समय तक उस मुकाम पर टिक पाते हैं