लाल खतरनाक दिखने वाली चीटियां अगर काट लें तो घंटों का कई दिनों तक दर्द और जलन कम न हो। लेकिन ये खतरना चीटियां बस्तर के आदिवासियों के भोजन का हिस्सा हैं। आदिवासी बड़े चाव से इन चीटियों की चटनी बनाकर खाते हैं। स्थानीय भाषा में इन्हें चपड़ा चाटी कहते हैं। आमतौर पर बस्तर के जंगलों में ये चीटियां पेड़ों पर पत्तों का घोसला बनाकर रहती हैं। ये चीटियां बस्तर के जंगलों के लगभग सभी प्रकार के पेड़ों में पाई जाती है। एक घोसले में हजारों चीटियां हो सकती है। इन चीटियों को पेड़ों से निकालना और इकट्ठा करना काफी मशक्कत और जोखिम का काम होता है और कोई हुनरमंद ही इस काम को कर सकता है। आप देख सकते हैं कि किस तरह ये चीटिंयां निकाले जाने पर गुस्सा होकर हमला बोल देती हैं और जमकर काटती हैं। जानकारों का कहना है कि अगर ज्यादा संख्या में चीटियां काट लें तो मौत भी हो सकती है। लेकिन बस्तर के ग्रामीण इन चीटिंयों को पेड़ों से निकाल लाते हैं और इसकी चटनी बना कर बड़े चाव से खाते है। तीखी मिर्च,धनिया,अदरक, लहसुन के साथ बनने वाली इस अनोखी चटनी का स्वाद बेमिसाल होता है । इसे ग्रामीण सिलबट्टे में पीसकर देशी तरीके से बनाते है।
लोगों का मानना है कि इसकी चटनी कई बीमारियों में कारगर फायदा करती है। बुखार होने पर भी बस्तर के आदिवासी इन चींटियों को अपने शरीर पर डाल लेते हैं, उनका मानना है कि चीटियों के काटने से बुखार उतर जाता है। बस्तर के बाजारों में भी चापड़ा यानी लाल चीटी बिकती हैं लोग इनको खरीदकर ले जाते हैं।