छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को हाई-पावर कमेटी ने आदिवासी नहीं माना है। जोगी की जाति के मामले की जांच कर रही डीडी सिंह की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने साफ किया है कि जोगी को अनुसूचित जनजाति के लिए मिलने वाले लाभों की पात्रता नहीं होगी। समिति ने छानबीन के बाद अपनी रिपोर्ट दी है जिसके मुताबिक अजित जोगी सतनामी आदिवासी नहीं हैं। समिति का कहना है कि अजित जोगी अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाले सतनामी समुदाय हैं। हालांकि अजित जोगी ईसाई धर्म अपना चुके हैं लेकिन उनका दावा है कि वे सतनामी आदिवासी हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार की एक उच्च स्तरीय कमेटी ने अजीत जोगी को आदिवासी मानने से इंकार कर दिया था और उनका आदिवासी जाति प्रमाण पत्र भी निरस्त कर दिया था। इस फैसले को चुनौती देते हुए अजीत जोगी के हाई कोर्ट गए थे। याचिका पर फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने एक नई हाई पॉवर कमेटी बनाकर इस मामले की जांच करने के निर्देश दिए थे। अब नई हाई पावर कमेटी ने भी अजित जोगी को आदिवासी नहीं माना है जिसके बाद जोगी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। माना जा रहा है कि जोगी के राजनैतिक करियर पर भी इसका असर पड़ सकता है क्योंकि जिस मरवाही सीट से जीतकर जोगी विधायक बने हैं वह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस रिपोर्ट को लेकर अजित जोगी ने भूपेश बघेल सरकार पर निशाना साधा है और रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। गौरतलब है कि अजीत जोगी मध्यप्रदेश कैडर के IAS रहे हैं। भोपाल से BE की पढ़ाई करने के बाद IAS बने अजीत जोगी 14 साल तक MP में कलेक्टर रहे। जिसमें से काफी समय इंदौर कलेक्टर के रूप में काम किया। बाद में रायपुर कलेक्टर रहने के दौरान राजीव गांधी के संपर्क में आए और राजीव गांधी के कहने पर कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आ गए थे। जोगी की जाति को लेकर काफी पहले से विवाद होता रहा है। 1987 में इंदौर के वकील मनोहर दलाल ने भी जोगी की जाति को लेकर कोर्ट में याचिका लगाई थी लेकिन वहां से जोगी को राहत मिल गई थी।