ये सिर्फ बप्पा का विसर्जन नहीं था. गजानन की इस विशालकाय प्रतिमा को सिराते सिराते ग्यारह जिंदगियां भी खत्म हो गईं. गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ के जयकारों के बाद बप्पा तो अगले बरस लौट आएंगे. लेकिन उनके साथ विसर्जित हुईं ये ग्यारह जानें कभी लौटकर नहीं आ सकेंगी. इस दिन के साथ हर बरस लौटेगा तो बस ये रूदन, ये मातम. जो इन घरों में पसरा हुआ है.
एम्बियेंस
एक के बाद एक दस अर्थी और एक जनाजा इन घरों से निकला तो हर आंख नम हो गई. कुछ आंखों की तो शायद यादें भी धुंधली हो जाएं. क्योंकि आंखों का पानी भी तालाब जितना ही गहरा जो है.
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इन दुखते दिलों पर मरहम लगाने कई नेता पहुंच रहे हैं. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंचे, जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा भी पीड़ितों के निवास पहुंचे. उनसे पहले कैबिनेट मंत्री जयवर्धन सिंह भी पीड़ितों से मिले.
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मुआवजे का मरहम, तकलीफ दूर कर सकता है. लेकिन इस जख्म का क्या जो गणपति के हर जयकारे के साथ टीस मारेगा. इस दर्द की विदाई तो हर साल बप्पा के विसर्जन के साथ भी नहीं हो सकती.