क्या इस श्राप के कारण हारे ज्योतिरादित्य सिंधिया?

गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से ग्वालियर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की अप्रत्याशित हार को लेकर अब तरह-तरह की बातें सामने आने लगी हैं। कुछ लोगों का कहना है सिंधिया की हार के पीछे सिंदूर लगे पूजा के नारियल का अपमान है, कुछ लोग इसके पीछे टोना-टोटका तो कुछ श्राप की बातें कह रहे हैं। सबसे पहले आपको बताते हैं सिंदूर लगे नारियल के अपमान की कहानी- ये वाकया मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय का बताया जाता है जब सिंधिया प्रचार के लिए बुंदेलखंड के पन्ना इलाके में गए थे। वहां पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भैरोटेक मंदिर से अभिमंत्रित कराया हुआ नारियल सिंधिया को दिया था लेकिन सिंधिया ने पूजा का वह नारियल सड़क पर फेंक दिया था। इसके बाद माना जा रहा था कि पूजा के नारियल के अपमान से सिंधिया का कुछ अनिष्ट हो सकता है। हुआ भी था, MP में कांग्रेस की सरकार बनने के बावजूद CM पद के दावेदार सिंधिया CM नहीं बन पाए थे। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी अपने ही प्यादे के हाथों सिंधिया की करारी हार हुई। दूसरी कहानी नींबू मिर्ची के हार पहनने की है और यह भी विधानसभा चुनाव के समय की ही घटना है सिंधिया ने शिवराज सरकार के हारने तक फूलों का हार नहीं पहनने की कसम खाई थी और एक सभा में कुछ लोगों ने सिंधिया को नींबू मिर्ची का हार पहना दिया था। जानकारों का कहना है कि नींबू मिर्ची का हार बगैर जाने-परखे नहीं पहनना चाहिए। इसमें टोना-टोटका होने की संभावना रहती है। बाद में सिंधिया के राजनैतिक पराभव के पीछे भी यही कारण माना जा रहा था विधानसभा चुनाव के बाद से ही जहां कमलनाथ के सितारे बुलंद होने लगे वहीं सिंधिया पहले तो सीएम पद की रेस से बाहर हुए फिर एमपी से बाहर हुए फिर लोकसभा चुनाव भी हार गए। अब बात एक श्राप की जो बताया जाता कि सिंधिया खानदान को किसी साधु ने काफी पहले दिया था। ग्वालियर-चंबल अंचल में जनश्रुति है कि सिंधिया के पूर्वज महादजी सिंधिया को किसी साधू ने एक रोटी दी थी कि अगर ये रोटी महारानी खाएंगी तो सिंधिया खानदान का सितारा हमेशा चमकता रहेगा लेकिन महारानी ने रोटी आधी खाकर फेंक दी जिसके बाद साधु नाराज़ हो गया था और श्राप दिया था कि समय के साथ सिंधिया राजवंश का दबदबा खत्म हो जाएगा। अब कहा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार के पीछे भी उसी साधु का श्राप है जो समय के साथ फलीभूत हो रहा है। फिलहाल इन सब बातों में कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं लेकिन ये तय है कि हार के बाद सिंधिया का राजनैतिक कद कम हुआ है और ये भी माना जा रहा है कि राजवंश और वंशवाद के खिलाफ लोगों में जागरुकता बढ़ रही है।

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