मध्यप्रदेश के मासूमों को किसकी नजर लग गई?

कभी शांति का टापू कहे जाने वाले मध्यप्रदेश को लगता है किसी की बुरी नजर लग गई है। खासतौर पर मध्यप्रदेश के मासूमों को तो नजर लग ही गई है। पिछले छह-सात महीनों में मासूमों के अपहरण, हत्या, रेप जैसी वारदातों में अचानक इज़ाफा हो गया है। मानो अपराधियों को कानून की कोई परवाह ही नहीं है। सतना में जुड़वां बच्चों के अपहरण और हत्या का मामला हो, इंदौर में बच्ची के अपहरण, रेप और हत्या का मामला हो, या भोपाल में बच्ची का रेप और हत्या के बाद हाल ही में चीचली गांव में मासूम बच्चे के अपहरण के बाद हत्या का मामला हो, पुलिस कहीं न कहीं अपराधियों के सामने पस्त नजर आ रही है। सतना में भी अपहरण के बाद पुलिस हवा में हाथ पैर चलाती रही और हत्या के बाद मामले का खुलासा करके खुद की पीठ ठोंकने का काम किया जबकि अपराधी पुलिस के सामने ही थे यही किस्सा भोपाल में दोहराया गया । मासूम के अपहरण के बाद पुलिस जांच की खानापूर्ति करती रही और अपराधी वहीं सामने था। जब मासूम की लाश मिली तो पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने की खानापूर्ति कर दी। कुल मिलाकर अधिकांश मामलों में कोई जान-पहचान, आस-पड़ोस का व्यक्ति ही अपराध में शामिल था लेकिन पुलिस मर्डर होने के बाद मामले का खुलासा कर पाई। मध्यप्रदेश में आए दिन मासूमों के साथ हो रही वारदातों ने आम व्यक्ति की नींद उड़ा दी है। जिसके भी घर में छोटे बच्चे हैं वह सशंकित है कि कल कहीं उनके बच्चों के साथ कोई हादसा न हो जाए। वहीं पुलिस और कानून व्यवस्था नाकाम नजर आ रही है। सरकार और गृह मंत्री ट्रांसफर-पोस्टिंग में बिजी हैं और वारदात हो जाने के बाद सहानुभूति प्रकट करने की औपचारिकता निभा रहे हैं वहीं विपक्षी भाजपा के लोग सरकार को कोस रहे हैं।

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