मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया उस सिंधिया राजवंश के नवीनतम वारिस हैं जिसकी जड़ें महाराष्ट्र में सतारा से शुरू होती हैं। इतिहास की पुस्तकों और सिंधिया खानदान के ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक 18 वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के भोसले, गायकवाड़ और होल्कर राजवंश की तरह ही शिंदे यानी सिंधिया राजवंश भी प्रमुख मराठा सरदारों में शुमार किया जाता था। 1726 में रणोजी सिंधिया को मालवा का पेशवा बनाया गया था। रणोजी सिंधिया ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था लेकिन उनकी मौत के बाद सिंधिया राजवंश ने ग्वालियर में अपनी राजधानी बनाई। रणोजी के उत्तराधिकारियों में सबसे महत्वपूर्ण नाम महादजी सिंधिया का था जिन्होंने पूरे उत्तर भारत में अपने साम्राज्य को फैलााया था। कहा जाता है कि महाजदी सिंधिया ने दिल्ली को लूटकर मुगल साम्राज्य को भी अपनी मुट्ठी में कर लिया था। इतिहासकारों के मुताबिक अंग्रेज़ों और फ्रांसीसी लोगों की मदद से महादजी सिंधिया ने राजपूतों को हराकर नर्मदा से सतलुज तक उत्तर भारत पर कब्जा लिया था। लेकिन 1818 में ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने मराठा शक्ति को चकनाचूर कर दिया और सिंधिया राजवंश अंग्रेजी राज की एक रियासत बनकर रह गया। इसी दौरान सिंधिया परिवार की बागडोर दौलत राव सिंधिया के हाथ में आई। खास बात ये है कि सिंधिया राजवंश में महिलाओं को भी सत्ता में बराबरी का मौका मिला और इस राजवंश में कई मौके ऐसे आए जब सिंहासन महिलाओं के हाथ में रहा। दौलतराव सिंधिया की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी बैजाबाई सिंधिया ने शासन किया। उन्होंने जनकोजी राव को दत्तक पुत्र बनाया और उनकी मृत्यु के बाद ताराबाई ने सत्ता संभाली। 1947 में अग्रेज़ी हुकूमत ने देसी रियासतों के सामने एक चयन प्रस्ताव रखा था कि वे चाहें तो अलग रहें या भारत या पाकिस्तान में विलय कर लें। सिंधिया परिवार ने भारत में विलय का निर्णय लिया था और जीवाजीराव मध्य भारत में राजप्रमुख बना दिए गए। हालांकि सिंधिया राजवंश के साथ विवादों का भी नाता रहा है कभी सिंधिया परिवार को अंग्रेज़ों का हितैषी होने का आरोप लगता है तो कभी रानी लक्ष्मीबाई की शहादत में सिंधिया परिवार के विश्वासघात को दोषी ठहराया जाता है। लेकिन सिंधिया परिवार ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है। 1962 में जीवाजी राव की पत्नी विजया राजे सिंधिया ने चुनावी राजनीति में प्रवेश लिया और तबसे उनके परिवार का भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों कांग्रेस और बीजेपी में दबदबा बना हुआ है। चाहे माधवराव सिंधिया रहे हों या अब वसुंधरा राजे सिंधिया हों, यशोधरा राजे सिंधिया हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया हों इन सभी ने राष्ट्रीय और प्रादेशिक राजनीति में अपना दबदबा कायम रखा है। अब हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में हार के बाद माना जाने लगा है कि सिंधिया परिवार का दबदबा कम होने लगा है।