कमलनाथ सरकार ने कैबिनेट में अहम फैसला लिया है. जो शायद इस बार होने वाले नगरीय निकाय चुनाव में सियासी बिसात को बदल सकता है. इस फैसले के मुताबिक अब जनता सीधे अपने शहर के महापौर का चुनाव नहीं कर सकेगी. बल्कि अब जनता पार्षदों का चुनाव करेगी और वो पार्षद अपना नेता यानि कि महापौर चुनेंगे. तकरीबन दो दशक बाद एक बार फिर नगरीय निकाय चुनाव में ये महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है… इससे पहले जनता के वोट के आधार पर ही मेयर का फैसला होता था. लेकिन अब कमलनाथ कैबिनेट ने इस व्यवस्था को बदल दिया है. हालांकि बीजेपी ने इस फैसले पर आपत्ति दर्ज करवाई है. लेकिन कमलनाथ सरकार इसे बदलने के मूड में नहीं है. दरअसल कांग्रेस को उम्मीद है कि महापौर के अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए इलेक्शन से कांग्रेस को ज्यादा फायदा होगा. इसके साथ ही परिसीमन के लिए भी चुनाव से पहले छह माह की अवधि को घटा कर दो माह कर दिया गया है.