इंडियन आर्मी के एडिशनल डायरेक्टोरेट जनरल पब्लिक इन्फॉरमेशन की साइट पर डाले गए ट्वीट में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता पोस्ट की गई है। इस कविता में दिनकर ने कृष्ण की ओर से अर्जुन को समझाने का वर्णन किया है। और बताने का प्रयास किया है कि जब तक दुश्मन के सामने क्षमा और विनम्रता का प्रदर्शन करते हुए अत्याचार सहा जाएगा तो दुश्मन आपको कमजोर और कायर समझेगा। सच्चाई यह है कि क्षमा और विनम्रता भी तभी शोभा देती है जब आपके पास दुश्मन को तबाह करने का साहस और क्षमता हो। बगैर ताकत के क्षमा और विनम्रता का कोई महत्व नहीं है। माना जा रहा है कि इंडियन आर्मी इस कविता के जरिए यह दर्शाना चाहती है कि यदि हम विनम्रता के काम ले रहे हैं और दुश्मन को माफ कर रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम कमजोर या कायर हैं। बल्कि मौका पड़ने पर दुश्मन को धूल चटा सकते हैं। आर्मी के ट्वीट में कविता के सिर्फ दो ही छंद लिए गए हैं। आइए जानते हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पूरी कविता क्या है।
शक्ति और क्षमा
रामधारी सिंह “दिनकर”
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।