कांग्रेस से राज्यसभा उम्मीदवार फूल सिंह बरैया को हर बार राजनीति खुद से परे ही धकेलती आई है. जिस पार्टी से पहली बार विधायक बने उसने उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले ही निकाल दिया. ये पार्टी थी बीएसपी. जिसे बरैया ने खूब मेहनत करके मध्यप्रदेश में पहचान दिलाई. लेकिन एक गंभीर आरोप के चलते मायावती ने उन्हें उस वक्त पार्टी से निकाल दिया जिस वक्त वो भांडेरे से विधायक थे. इसके बाद बरैया राम विलास पासवान की लोकजनशक्तिपार्टी में गए. लेकिन यहां भी थोड़े समय बाद पार्टी ने अपना ऑफिस बंद कर दिया. फिर बीजेपी. उसके बाद अपनी खुद की पार्टी बहुजन संघर्ष दल और अब कांग्रेस. बीएसपी से निकाले जाने के बाद बरैया ने कई पार्टियों की दर दर की ठोकरें खाईं. अपने दम पर चुनाव भी लडे लेकिन हारते ही रहे. कांग्रेस इसी उम्मीद से ज्वाइन की थी कि शायद यहां कोई आधार मिलेगा. मिला भी राज्यसभा के उम्मीदवार बन कर. लेकिन यहां भी पहली वरियता दिग्विजय सिंह को दी गई. बीच में दलित कार्ड का शगूफा भी छेड़ा गया. हालांकि पूरे मसले पर बरैया बेहद खामोश हैं. और सिर्फ यही कहा कि जो भी हो रहा है उनकी मर्जी से हो रहा है. वाकई बरैया की मर्जी है भी. क्योंकि ये खबर है कि कांग्रेस बरैया को गोहद से विधानसभा का टिकट देने वाली है. और अगर गोहद से न दे सकी तो भांडेर से टिकट देगी. वैसे भी कांग्रेस को भी सिंधिया समर्थकों के इलाके में दमदार प्रत्याशी की जरूरत है. और ये खोज बरैया पर जाकर खत्म हो सकती है. क्योंकि इस इलाकों में बरैया कई सालों से सक्रिय भी हैं. कांग्रेस को बरैया के रूप में एक भरोसेमंद प्रत्याशी मिल सकता है. और बरैया की भी बरसों की आस शायद कांग्रेस के झंडे के नीचे आकर पूरी हो सकती है. वैसे भी ये दोनों सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. इसलिए फिलहाल कांग्रेस को भी बरैया से मुफीद उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में गोहद या फिर भांडेर से बरैया को कांग्रेस से टिकट मिल जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा.
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