कमलनाथ सरकार के दौरान कांग्रेस ने संजय पाठक पर जमकर डोरे डाले. उन्हें अपने पाले में लाने के लिए साम दाम दंड भेद हर पैंतरा आजमाया. पर संजय तो बीजेपी के साथ वफादार बने रहने पर ही अमादा रहे. कमलनाथ सरकार गिराने के लिए शिवराज के साथ मिलकर पूरी ताकत लगा दी. लेकिन अब जब उस वफादारी का फल मिलने का वक्त आया है तो पूरी पार्टी ही संजय के साथ बेवफा हो गई है. प्रदेश में जब बीजेपी की सरकार बन रही थी तब ये तय माना जा रहा था कि अब संजय पाठक को अपनी वफादारी का पूरा फल मिलेगा. शिवराज कैबिनेट में उनका नाम शामिल होगा. पर हुआ इसका उल्टा. सिंधिया समर्थकों की वजह से पहले ही कैबिनेट में जगह कम है. उसमें भी खुद सीएम शिवराज जितने लोगों को कैबिनेट में दिल से शामिल करना चाहते हैं उस लिस्ट में भी संजय पाठक का नाम दूर दूर तक नहीं है. यानि शिवराज पहली बार ही नहीं दूसरी बार भी कैबिनेट विस्तार करेंगे तब भी इस फेहरिस्त में संजय पाठक का नाम आना मुश्किल ही होगा. ऐसे हालात में संजय जरूर ये सोच रहे होंगे कि अगर उस वक्त कमलनाथ का ही साथ निभाते तो कितना अच्छा होता.
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