पंद्रह साल में अठ्ठाइस तबादले वाली मप्र की तहसीलदार अमिता सिंह ने फेसबुक पर अपने अकाउंट में मौजूदा व्यवस्था पर तीखे सवाल उठाये हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में यह पोस्ट चर्चा का विषय बना हुआ है। इसमे उन्होंने लिखा है..
शासकीय सेवा बनाम राजनीतिक सरंक्षण ,चाटुकारिता ,भ्रष्टाचार और जी हजुरी !! मन बहुत व्यथित है एक अकारण सज़ा, दूसरा शारीरिक अक्षमता के कारण कुछ करने, कहीं आने जाने में हो रहे कष्ट के कारण !! मेरे कई साथी मित्रों और वरिष्ठों को इस पोस्ट पर निश्चित रूप से बहुत आपत्ति होगी खिसियाहट होगी, ग़लत बताएँगे पर सच हमेशा से कड़वा ही रहा है। मलाई खाने वाले लोगों को नीम की कड़वाहट कैसे पसंद आ सकती है, विचारणीय है !! ख़ैर ! एक और, हमारे तथाकथित देशभक्त राजनेता ज़ीरो टॉलरन्स की बात करते हैं दूसरी और उनकी पसंद वही शासकीय कर्मचारी अधिकारी होते हैं जो महीने के महीने एक बड़ा चम्मच मलाई वो भी मिश्री मिलाकर उनके मुँह में डालता हो ! शासकीय सेवा के 31 वर्ष में यही देखती आइ हूँ !
चाहे मनचाही पोस्टिंग हो, मनचाहा ट्रान्स्फ़र हो, मनचाहा प्रमोशन हो या राष्ट्रीय दिवसों पर मिलने वाले उत्कृष्ट कर्मचारी का पुरस्कार हो !! उन्ही के ऊपर ये अनुकंपा होती है जो मलाई खाता और खिलाता हो । खाने वाला वरिष्ठ कार्यालय शासकीय और राजनैतिक होना चाहिए !! आप जनसेवक हैं इस धारणा को दिल दिमाग़ में रखकर चाहे जितने जनहितेषी कार्य कीजिए , आपके कार्य से कितने ही ग़रीब, दलित ,दबे कुचले आम जन के चेहरे पर मुस्कुराहट आइ हो !!! उनकी लाखों दुआएँ आपके साथ हो पर अगर आपने ऊपर मलाई का कटोरा नहीं भेजा है तो आपकी ये सारी क़वायद बेमतलब सिद्ध होगी ! जो लोग इस बात को आत्मसात कर उसी हिसाब से शासकीय सेवा कर रहे हैं।
उनकी सेवा उत्कृष्ट सेवा मानी जाकर सराही जा रही है। जिसने सही रूप से जनसेवा की है उसको सिर्फ़ ईश्वर ही देख पा रहा है वरिष्ठ कार्यालय की आँखों पर उस साइड पट्टी ही बंधी रहेगी ! दुखद ही नहीं शर्मनाक तो यह है कि जनता के दुःख दर्द में घड़ियाली आँसू बहाने वाले जनप्रतिनिधि भी सिर्फ़ जनता के हितेषी होने का दावा करते हैं पर जब मलाई की बात आती है तो चुपचाप मलाई खाना ही सबको पसंद आता है ! मेरी शासकीय सेवा में मेरे सारे ट्रान्स्फ़र 15 वर्ष में 28 ट्रान्स्फ़र सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी कारण हुए कि मेने जनहितेषी काम किया !
सार्वजनिक रूप से उन जनप्रतिनिधि तथाकथित जनता के हितेषी लोगों का नाम लेना उचित नहीं है वरना मयसबूत एक एक का नाम सार्वजनिक कर सकती हूँ, कि कब किस जनहित के काम से किस जनप्रतिनिधि को क्या कष्ट हुआ और उसने ट्रान्स्फ़र करवाया ! उनमें से कई एक तो सर्वोच्च सदन में बैठे नज़र आते हैं ! अब बात नौकरशाही की ! वरिष्ठ कार्यालय में आपका नुक़सान करने वाली फ़ाइल वन्देभारत ट्रेन चूंकि अब इसने स्पीड में शताब्दी को पीछे कर दिया इसलिए इस ट्रेन का नाम लिख रही हूँ , की स्पीड से दौड़ती है, मलाई न खिलाने वाले कर्मचारी का पक्ष भी नहीं लिया जाता !!
और अगर कुछ नियमानुसार भला होना हो तो साहब के पास एक चिड़िया बैठाने का टाइम भी हफ़्तों महीनों नहीं होता है ! हाँ अगर आपके ऊपर किसी राजनेता का हाथ हो तो वो फ़ाइल भी वन्देभारत की तरह दौड़ सकती है, कोई शक नहीं !!कोई कुछ कहने वाला नहीं कोई कुछ सुनने वाला नहीं इस व्यवस्था में !! देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन स्तम्भ बनाए गए जिस से चेक ऐन बैलेन्स बना रहे पर विधायिका के वरदहस्त प्राप्त कार्यपालिका इतनी निरंकुश हो चली है कि न्यायपालिका उसके आगे बौनी हो चली हैं !
न्यायपालिका कोई आदेश करें तो जूडिशीएरी की ऑर्डर की भाषा का अपने हिसाब से अर्थ बताया जाकर उसमें कोई लेकूँना बता कर उस आदेश को भी धता बता दिया जाता है ! कठिन प्रतियोगी परीक्षा पास करके आए हम जैसे लोग उसी परीक्षा में कुछ ज़्यादा अंक पाए लोगों की प्रताड़ना का शिकार होते आए हैं हो रहे हैं और होते रहेंगे !! शर्म आती है कि हम भी उसी घटिया नीच व्यवस्था का हिस्सा हैं जहाँ मानवीय संवेदना ,जनहित ,जैसे शब्द शब्दकोश में पाए ही नहीं जाते !! घिन आती है हम उस सिस्टम का हिस्सा हैं जहाँ स्वाद के सिर्फ़ मलाई की मिठास ही पसंद है, सत्यता, निष्ठा ईमानदारी जैसे कड़वे स्वाद को पसंद नहीं किया जाता ! जिसे बुरा लगा बेशक मुझे अन्फ़्रेंड् कर दे जिस मलाई खाने वाले वरिष्ठ को बुरा लगा एक और अनुशासनात्मक कार्यवाही कर दे पर अब तो क़लम चुप रहेगी न ज़ुबान !! बहुत हुआ अब और नहीं ! जय हिंद