कांग्रेस पार्टी में पिछले कुछ दिनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया की पूछ परख कम हो गई है बल्कि कहा जाए तो कई मामलों में सिंधिया की उपेक्षा की जा रही है। चाहे कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व हो या मध्यप्रदेश का कोई मामला हो, ज्योतिरादित्य सिंधिया की लगातार उपेक्षा की जा रही है। यहां तक कि सिंधिया को लगातार मध्यप्रदेश से बाहर का प्रभार दिया जा रहा है। सिंधिया समर्थकों का तो ये भी आरोप है कि महाराज को साजिश रचकर लोकसभा चुनाव में हरवाया गया है। एक समय था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में सीएम पद के दावेदार थे। तब उन्हें सीएम नहीं बनाया गया, उप-मुख्यमंत्री भी नहीं बनाया गया और एमपी से हटाकर एआईसीसी का महासचिव बना दिया गया और लोकसभा चुनाव में यूपी का प्रभारी बना दिया। अभी कुछ दिन पहले फिर सिंधिया को महाराष्ट्र में कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी का प्रभारी बना दिया। कहा जा रहा है कि पार्टी में इस तरह की उपेक्षा से नाराज और दुखी होकर सिंधिया कांग्रेस से नाता तोड़ सकते हैं। हालांकि कुछ दिन पहले तक सिंधिया के बीजेपी में जाने की बात भी उठ रही थी लेकिन सूत्रों के मुताबिक बीजेपी से सिंधिया की बात बनी नहीं और अब विकल्प के तौर पर सिंधिया के खुद की पार्टी बनाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। सिंधिया के कुछ समर्थक भी इस कोशिश में हैं कि महाराज के कद को देखते हुए किसी और पार्टी में जाने के बजाय खुद की पार्टी बनाना ज्यादा अच्छा विकल्प है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस से बगावत करना या कांग्रेस छोड़ना कोई बहुत आश्चर्यजनक कदम नहीं होगा क्योंकि इससे पहले उनकी दादी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गई थीं और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस से बगावत करके अपनी अलग पार्टी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी। वर्तमान सियासी हालातों में अपनी दादी और पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अगर सिंधिया कांग्रेस, माधव कांग्रेस या मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस जैसी कोई पार्टी बना लें तो बड़ी बात नहीं होगी।