अशोकनगर जिले का करीला धाम शायद देश का एक मात्र ऐसा स्थान है। जहां भगवाम श्रीराम के बिना ही सीता माता की पूजा होती है। वैसे तो यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन इस बार रंग पंचमी के मौके पर लगे मेले में एक ही दिन में करीब 25 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचे और माता जानकी के दर्शन किये। करीला के बाल्मीकि आश्रम के मंदिर में भगवान श्रीराम की मूर्ति न होने के पीछे कारण बताया जाता है कि त्रेता युग में जब लोकोपवाद के चलते मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम ने सीता माता का परित्याग किया था तब लक्ष्मण उन्हें इसी जंगल मे छोड़ गए थे इसी दौरान ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में सीता माता ने आश्रय लिया था और उन्होंने इसी आश्रम में रंगपंचमी के दिन लव-कुश को जन्म दिया था जब लव कुश का जन्म हुआ था तब स्वर्ग से अप्सराओं ने यहां आकर बधाई नृत्य किया था और तब से लेकर आज तक लव कुश का जन्मोत्सव मनाने यहां श्रद्धालु आते है और मन्नत मांगते है जब उन की मन्नत पूरी हो जाती है तब वह बधाई स्वरूप राई नृत्य कर बाते है।
जिस तरह लाखो श्रद्धालु यहा दूर दुर से आते है उसी तरह यहां नृत्य करने बाली नृत्यागनायें भी हजारो कि संख्या में दूर दूर से आती हैं। माना जाता है कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां पर मान्यता पूरी होने पर प्रसाद के रूप में राई नृत्य करवाया जाता है। इस बार भी मेले में रात भर राई नृत्यांगनाओं का नाच चलता रहा और करीला धाम ढोल और नगाड़ों के साथ घुंघरुओं की झनकार से गूंजता रहा।