मध्यप्रदेश में पंद्रह साल सत्ता से बाहर रहने के बाद लगता है कि कांग्रेस के लोगों को सत्ता की मलाई पच नहीं पा रही है। आठ महीने में ही पार्टी में फूट और गुटबाजी उभर कर सामने आ गई है। विरोधी बीजेपी के नेता कांग्रेस की इस रार और तकरार का मजा लेने में जुटे हैं। कुछ का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के विसर्जन के सू्त्रधार बनेंगे तो कुछ का कहना है कि इसका ठेका सिर्फ दिग्विजय सिंह के पास है। सियासी जानकारों का कहना है कि दिग्विजय सिंह की बयानबाजी और कारनामों के कारण पंद्रह साल पहले कांग्रेस का प्रदेश से सूपड़ा साफ हो गया था और अब फिर से दिग्गी राजा की बयानबाजी और कारनामों के कारण पार्टी की गुटबाजी और फूट उजागर हो रही है। अगर यही स्थिति रही तो जैसा बीजेपी के लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर बीजेपी नहीं करेगी बल्कि ये खुद ही अपने कर्मों से बाहर हो जाएगी। आठ महीनों में ही इसके आसार नजर आने लगे हैं। मध्यप्रदेश को एक स्थिर और मजबूत सरकार दे पाना तो दूर कांग्रेस अभी अपनी कलह-किटकिट से ही जूझ नहीं पा रही है। पार्टी का हर धड़ा अपनी महत्ता साबित करने में जुटा है। सत्ता और संगठन के बीच तालमेल कहीं नजर नहीं आ रहा है। और अब सवाल ये उठने लगा है कि अगर कांग्रेस का विसर्जन हुआ तो उसका जिम्मेदार किसे माना जाए- दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया या कमलनाथ को या फिर प्रदेश सरकार के बयानबाज मंत्रियों को या समर्थन देने के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले विधायकों को।