पंद्रह सालों तक चुनावी राजनीति से दूर रहने के बाद मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में हैं। दिग्गी राजा को कमलनाथ ने कांग्रेस के लिए कठिन मानी जाने वाली भोपाल सीट से एक चुनौती के रूप में उम्मीदवार बनवाया है। चुनावी विश्लेषकों और सियासी जानकारों का कहना है कि भले ही कांग्रेसी नेता और दिग्गी समर्थक यहां से दिग्विजय सिंह की जीत के दावे कर रहे हों लेकिन उनकी जीत की राह आसान नहीं है। हम आपको बता रहे हैं कि दिग्गी राजा की जीत में क्या बाधा आ सकती है।
1. सवर्ण वोट
दिग्विजय सिंह के शासन काल की कुछ नीतियों और उनकी बयानबाजी के कारण भोपाल में बड़ी संख्या में सवर्ण वोटरों में नाराजगी है। दो दिन पहले सवर्ण वोटरों को साधने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने एक कार्यक्रम भी रखा था लेकिन उसमें गिने चुने लोग ही पहुंचे। जानकारी के मुताबिक भोपाल लोकसभा क्षेत्र में सवर्ण आबादी 20% से अधिक है जिसकी नाराजगी दिग्गी राजा पर भारी पड़ सकती है।
2. कर्मचारी
अपने शासनकाल में दिग्विजय सिंह की कई नीतियां कर्मचारी संगठनों को पसंद नहीं आईं। दिग्विजय सिंह ने खुद माना है कि उनकी छवि कर्मचारी विरोधी है। सत्ता के अंतिम दिनों में तो दिग्विजय सिंह ने हजारों की संख्या में दैनिक वेतन भोगियों को नौकरी से निकाला था और बयान दिया था कि उन्हें कर्मचारियों को वोट नहीं चाहिए। हालांकि दिग्गी राजा ने कर्मचारी संगठनों से माफी मांगकर नाराजगी कम करने की कोशिश की है लेकिन इसका कितना फायदा होता है ये चुनाव के परिणाम बताएंगे।
3. RSS
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से दिग्विजय सिंह की पुरानी दुश्मनी है। दिग्गी राजा आरएसएस को बम बनाने की ट्रेनिंग देने वाला कहते रहते हैं और संघी आतंकवादी शब्द भी उन्हीं के द्वारा गढ़ा गया है। आरएसएस कभी नहीं चाहेगा कि दिग्विजय सिंह जीतकर पॉवरफुल बनें और फिर से उसके खिलाफ काम करें।
4. भितरघात
गुटबाजी और भितरघात कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। कांग्रेस में दिग्विजय सिंह गुट के अलावा प्रमुख रूप से कमलनाथ और सिंघिया गुट हावी हैं। जैसा कि माना जा रहा है कि एक रणनीति के तहत दिग्विजय सिंह को कठिन सीट से लड़वाया गया है तो ये भी माना जा रहा है कि गुटबाजी हावी रहेगी और भितरघात के जरिए उन्हें हरवाने की भी पूरी कोशिश होगी।
5. BJP की परंपरागत सीट
भोपाल लोकसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। पिछले 8 चुनावों से यहां पर बीजेपी का उम्मीदवार जीतता आ रहा है। 15 आमचुनावों में से नौ बार इस सीट पर गैर कांग्रेसी उम्मीदवार जीते हैं। 1989 से लगातार यहां पर बीजेपी का कब्जा है और खास बात ये है कि प्रदेश में कांग्रेस की यानी कि खुद दिग्गी राजा की सरकार होने के बावजूद भोपाल सीट पर बीजेपी जीती थी। कांग्रेस अल्पसंख्यक नेताओं से लेकर क्रिकेटर नवाब पटौदी और सुरेश पचौरी जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता तक को आजमा चुकी है। अब देखना है दिग्गी राजा क्या चमत्कार कर पाते हैं।
6. मि. बंटाधार की छवि
मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह दस साल तक मुख्यमंत्री रहे लेकिन उनके आखिरी कार्यकाल के दौरान प्रदेश की बिगड़ी हालत को लोग अभी भी नहीं भूले हैं। बीजेपी ने उनकी मिस्टर बंटाधार की छवि को फिर से जनता को रिकॉल कराने का प्लान बनाया है। अगर बीजेपी अपनी इस प्लानिंग में कामयाब होती है तो दिग्गी राजा के लिए मुश्किल हो सकती है।
7. सोलह सालों से प्रदेश की राजनीति से बाहर रहना
दिग्विजय सिंह ने अपना आखिरी चुनाव 2003 में लड़ा था और वो भी विधानसभा का। लोकसभा का चुनाव लड़े हुए उन्हें इससे भी ज्यादा समय हो चुका है। पिछले कई सालों से दिग्विजय सिंह प्रदेश की सक्रिय और चुनावी राजनीति से दूर हैं और इस दौरान वोटरों की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो चुकी है जो दिग्विजय सिंह के कामकाज को नहीं जानती।
8. विवादास्पद बयानबाजी
दिग्विजय सिंह अपनी विवादास्पद बयानबाजी को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। उनके बयान अक्सर देश और प्रदेश की बहुसंख्य जनता को रास नहीं आते। चुनावी मैदान में उतरने के बाद एक बार फिर बयानबाजी शुरू हो गई है जो उनकी जीत की राह में बाधा बन सकती है।
9. वोटों का ध्रुवीकरण
दिग्विजय सिंह मैदान में हैं तो विपक्षी दल यानी की बीजेपी की सबसे बड़ी कोशिश यही होगी की वोटों का ध्रुवीकरण किया जाए। ये माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक वर्ग को वोट दिग्विजय सिंह को मिलेंगे लेकिन अगर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो बाकी वोट दिग्विजय सिंह के खिलाफ जा सकते हैं।
10. वोटों का बड़ा अंतर
पिछले लगभग तीस सालों से कांग्रेस भोपाल लोकसभा सीट पर हारती आ रही है। खास बात ये है कि कांग्रेस की हार का अंतर हर बार लगभग एक लाख वोटों का रहा है। पिछली बार आलोक संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को तीन लाख सत्तर हजार वोटों के बड़े अंतर से हराया था और इस अंतर को पाटना दिग्विजय सिंह के लिए भी आसान नहीं है।