मध्यप्रदेश गठन की कहानी किसी से छिपी नहीं है. 1956 में दूसरे राज्यों की तरह मध्यप्रदेश भी अस्तित्व में आया. इसके घटक राज्य थे मध्यप्रदेश, मध्यभारत, विंध्य प्रदेश. और चूंकि भोपाल रियासत भी प्रदेश का हिस्सा बन चुकी थी इसलिए भोपाल भी इसी का हिस्सी थी. इन सारे हिस्सों की अपनी अलग अलग विधानसभाएं थीं. जबकि पट्टाभि सीतारमैया मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल चुने गए. उस वक्त सियासी घटनाक्रम कुछ ऐसे थे कि भारत की कुछ रियासतें ही प्रदेश बनने का विरोध कर रही थीं हैदराबाद के निजाम की तरह भोपाल रियासत भी प्रदेश बनने के खिलाफ थे. दूसरी तरफ ग्वालियर,इंदौर, जबलपुर राजधानी बनने की दौड़ में थे. कहा ये भी जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू भोपाल को देश की राजधानी भी बनाना चाहते थे. लेकिन भोपाल में चल रही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोकना पहले जरूरी था. उस वक्त सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तय किया कि भोपाल को ही प्रदेश की राजदानी बनाया जाए. ताकि सारा फोकस और शासकीय अमला भोपाल में ही होगा. राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को रोकने की इस नायाब तरकीब ने भोपाल को राजधानी का दर्जा दिलवाया. और इस तरह भोपाल राष्ट्रीय राजधानी नहीं बल्कि प्रदेश की राजधानी बना.