1. दंभ और अहंकार
पंद्रह सालों की सत्ता का दंभ भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सर चढ़कर बोला। जीत के प्रति अति आत्मविश्वास रहा। कांग्रेस को कमतर आंका।
1. टिकट वितरण में अदूरदर्शिता
गलत टिकट वितरण के कारण भाजपा के कई मंत्री और विधायक हार गए। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि 25 से 30 टिकट और काटे जाने थे।
2. कमजोर प्रदेश नेतृत्व
प्रदेश संगठन और नेतृत्व की कमजोरी के चलते बागियों ने सिर उठाया। कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय नहीं रहा। कई समर्पित कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता संगठन से नाराज रहे।
3. समर्पित वोट बैंक और कार्यकर्ताओं की अनदेखी
पार्टी के प्रति समर्पित वोट बैंक और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। कांग्रेस छोड़कर आए लोगों को तवज्जो दी गई। समर्पित वोट बैंक भी पार्टी से दूर हुआ।
4. बागियों को मना पाने में विफलता
पार्टी संगठन बागी और नाराज नेताओं को मना पाने में विफल रहा। जिसके चलते कई सीटों पर भाजपा के वोट बंटे और उसे हार का मुंह देखना पड़ा।
5. संघ और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी की गई। पार्टी में कुछ ही नेता सर्वेसर्वा बने रहे। इसके चलते जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ।
6. फिर भाजपा फिर शिवराज
शिवराज सिंह चौहान लगातार भाजपा का चेहरा बने रहे टिकट वितरण में भी शिवराज सिंह का बहुत ज्यादा दखल रहा।
इसके कारण भाजपा के ही कई नेताओं ने पार्टी को जिताने में रुचि नहीं दिखाई।
भाजपा की हार के गुनहगार
1. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
पूरे चुनाव में भाजपा का चेहरा रहे लेकिन सत्ता वापस नहीं ला पाए।
2. प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह
डमी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नजर आए। खुद अपने इलाके महाकौशल में ही पार्टी को नहीं जिता पाए।
3. प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे
प्रमुख रणनीतिकार की रणनीति फेल हो गई। वोटर की नब्ज पकड़ पाने में विफल रहे। टिकट वितरण में भी अदूरदर्शिता।
4. प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत
कमजोर संगठन के चलते पार्टी के कई नेता नाराज हुए। बागियों को संभाल पाने में संगठन नाकाम रहा।
5 वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर
परदे के पीछे संगठन चलाया लेकिन अपने प्रभुत्व वाले इलाके में पार्टी को हार से नहीं बचा सके।
6. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा
पूरे प्रदेश में दौरा करते रहे लेकिन बागियों को मना नहीं पाए।