भले ही देश को आजादी मिले 71 साल पूरे हो चुके हों। पर गंजबासौदा के आजाद नगर में आजादी किसी भी मायने में नहीं पहुँची है। यहाँ रहने वाले सहरिया आदिवासी आजादी के बाद भी बंधुआ मजदूरी करने पर मजबूर थे। जिसके बाद कैलाश सत्यार्थी और उनकी टीम ने इन आदिवासियों को बंधुआ मजदूरी से आजाद कराया। लेकिन अभी भी ये आदिवासी मूलभूत सुविधाओं को मोहताज हैं। गाँव में न ही सरकारी स्कूल है और न ही आंगनवाड़ी भवन। गांव का एकमात्र सरकारी स्कूल किराए के भवन पर लगता है। और उसमें भी सिर्फ 27 बच्चों के ही नाम दर्ज हैं।