शिवराज सिंह चौहान भले ही प्रदेश के मुखिया न रहे हों लेकिन प्रदेश की जनता के बीच मामा बनकर मिलने का शौक खत्म नहीं हुआ. कभी कभी उनकी सक्रियता देखकर लगता है कि कहीं शिवराज कंन्फ्यूज तो नहीं हुए. जो अब तक खुद को सूबे का मुखिया मानकर हर उस जगह पहुंच जाते हैं जहां जनता को उनकी जरूरत होती है. इसके चलते वो अक्सर विरोधी दलों के निशाने पर भी होते हैं. मंदसौर बाढ़ पीड़ितों के बीच जाने पर भी उनकी काफी आलोचना हुई. लेकिन शिवराज नहीं माने. और कर दिया विरोध प्रदर्शन का एलान. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि उनकी जितनी खिलाफत कांग्रेस कर रही है. उससे कहीं ज्यादा विरोध शायद उनकी अपनी पार्टी में है. क्योंकि उनके एलान के बाद पार्टी के किसी एक सदस्य ने भी उनका पक्ष नहीं लिया. न कोई ट्वीट हुआ न उनके प्रदर्शन का समर्थन हुआ. तो क्या इसके ये मायने ये हैं कि शिवराज अपनी ही पार्टी में अब अलग थलग पड़ गए हैं. या यूं कहें कि प्रदेश में बीजेपी के दो धड़े काम कर रहे है. एक तरफ शिवराज हैं जो बाढ़ पीड़ितों की सेवा में रमे दिख रहे हैं. दूसरी तरफ हैं बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह. जो शिवराज से अलग चल रहे हैं. अब कांग्रेस को घेरने की ये बीजेपी की कोई नई स्ट्रेटजी है या फिर शिवराज की सक्रियता को चुनौती देने की कोशिश. फिलहाल कहा नहीं जा सकता. न्यूज लाइव एमपी डॉट कॉम डेस्क.