अभी बमुश्किल दो ही दिन पहले की बात होगी. शिवराज सरकार में मंत्री रहे दीपक जोशी ने विरोध के स्वर मुखर किए थे. ये हिंट दे दिया था कि राजनीति का नया स्वरूप है उसका उपयोग करने से वो भी पीछे नहीं छूटेंगे. मतलब जरूरत पड़ी तो वो भी अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरे विकल्पों के बारे में सोच सकते हैं. ये धमकी इसलिए थी कि हाटपिपल्या में होने वाले उपचुनाव में उन्हें ही टिकट मिले. पर ये जरा मुश्किल है. मुश्किल इसलिए क्योंकि मनोज चौधरी ने हाट पिपल्या से 2018 में चुनाव लड़ा. और दीपक जोशी को हरा दिया. अब मनोज चौधरी भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इसी शर्त के साथ कि उन्हें ही उपचुनाव में टिकट मिलेगा. यानि बीजेपी की तो मजबूरी ठहरी की वो मनोज चौधरी को टिकट दें. लेकिन दीपक जोशी को संभालना भी बहुत जरूरी था ताकि वो खेल न बिगाड़ दें. इसलिए दीपक जोशी को किया गया तलब. प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत से मुलाकात के बाद दीपक जोशी की अक्ल ठिकाने आ गी और सुर भी बदल गए. एक ही समझाइश में दीपक के सारे मुगालते भी दूर हो गए. तो क्या ये मान लें कि विरोध की लहर इतने पर ही थम गई है.