मध्यप्रदेश की सियासत में अचानक भूचाल आया. हॉर्स ट्रेडिंग की खबर आई और फिर विधायक किसी नाटकीय घटनाक्रम के पात्र की तरह वापस लौट भी आए. इसे पूरे पॉलीटिकल सीनेरियो में कोई सबसे ज्यादा छाया रहा तो वो हैं दिग्विजय सिंह. सरकार के संकटमोचक बन कर उभरे. इस संकटमोचक की वानर सेना में सुग्रीव, बाली, नील, नल के किरदार भी थे. मसलन उनके खुद के बेटे जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी, तरूण भनोट. यानि कि टीम दिग्विजय सिंह ने अपने नंबर बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पर इस घटनाक्रम से जो पूरी तरह दूर रहा वो है ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थित विधायक और नेता. क्या ये ताज्जुब की बात नहीं कि सरकार से असंतुष्ट सिंधिया और उनके समर्थित नेता हैं लेकिन बीजेपी पर इल्जाम लग रहे हैं दिग्विजय और दूसरे खेमे के विधायकों को हाईजैक करने के. दाल में कुछ काला हो या न हो. लेकिन ये तय है कि सिंधिया के दीमाग में नई सियासी बिसात जन्म जरूर ले चुकी है. जिसकी वजह से वो इस पूरे मसले पर खामोश हैं. सिर्फ वही नहीं उनके समर्थित मंत्री भी. हालांकि कैबिनेट मंत्री प्रदीप जायसवाल की जुबान फिसली और वो कुछ ऐसा कह गए जिससे सिंधिया के पत्ते खुल सकते हैं.
लेकिन सिंधिया अब भी खामोश हैं. कुछ कहना तो दूर वो इस पूरे सियासी घटनाक्रम से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं. कमलनाथजी कहीं ये तुफान से पहले का सन्नाटा तो नहीं है. इस संकट को भांप लीजिए. क्या पता वर्तमान संकटमोचक अगली बार काम आए न आए