गुना से कांग्रेस सांसद और सिंधिया राजघराने के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया के किले में अकूत खजाना रखा हुआ है। पर यह खजाना कहाँ है। और कैसे इस खजाने तक पहुंचा जा सकता है। यह किसी को नहीं पता है। दरअसल जयाजीराव ने 1857 के संघर्ष के दौरान बड़ी मुश्किल से इस खजाने को विद्रोहियों और अंग्रेजी फौज से बचा कर रखा। ‘बीजक’ का रहस्य सिर्फ महाराजा जानते थे। और 1857 के गदर के दौरान महाराज जयाजीराव सिंधिया को यह चिंता हुई कि किले का सैनिक छावनी के रूप में उपयोग कर रहे अंग्रेज कहीं खज़ाने को अपने कब्जे में न ले लें। साल 1886 में किला जब दोबारा सिंधिया प्रशासन को दिया गया, तब तक जयाजीराव बीमार रहने लगे थे। वे अपने वारिस माधव राव सिंधिया ‘द्वितीय’ को इसका रहस्य बता पाते, इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। करोड़ों का खजाना और चांदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्नों का रहस्य भी उनकी मौत के साथ चला गया। पर माधवराव ने अपने सिपाहियों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की। उस तहखाने से माधवराव सिंधिया को 2 करोड़ चांदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न मिले। इस खजाने के मिलने से माधवराव की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत हो गई। सिक्कों की कीमत उन दिनों करीब 62 हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी। कर्नल बैनरमेन ने इस तहखाने को देख कर अपनी डायरी में इसे ‘अलादीन का खजाना’ लिखा था। कहा जाता है कि गंगाजली के कई तहखाने आज भी महफूज हैं पर सिंधिया घराने की पहुंच से बाहर हैं।