ये तस्वीर ऐतिहासिक है. एक बार फिर सिंधिया राजघराना और बीजेपी एक हो गए. कई दशकों बाद ये मंजर नजर आया. बुआओं ने तो राजमाता की विरासत को संभाल रखा था अब पोता भी अपनी दादी की विरासत को आगे बढ़ा रहा है. अपनी ही पार्टी से बगावत करने का मिजाज भी तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपनी दादी से ही मिला है. जो पिता से होते हुए ज्योतिरादित्य तक गया है. इतिहास गवाह है जब कांग्रेस में राजमाता विजयाराजे को पूरा सम्मान नहीं मिला तो उन्होंने बगावत की और संविद सरकार खड़ी कर दी. ये साल 1967 की बात है. क्या संयोग है कि उस वक्त उनकी संविद सरकार 18 महीने चली और अब सिंधिया ने 18 महीने चली कमलनाथ सरकार से मुंह फेर लिया है. बगावत के लहू ने माधवराव सिंधिया के दौर में भी जोर मारा था. जब वो अपनी अलग पार्टी उगता सूरज बना कर चुनाव लड़े थे. बाद में माधवराव सिंधिया कांग्रेस में शामिल हुए. कहते हैं उसके बाद राजमाता और माधवराव सिंधिया में कभी नहीं पटी.हालात इतने बिगड़े कि एक ही घर में रहते हुए राजमाता और माधवराव में बातचीत बंद हो गई. घर क्या वो थो सिंधिया राजघराने का आलीशान महल था. जिसमें एक दूसरे से न मिल पाना बहुत मुमकिन है. अब बात ज्योतिरादित्य सिंधिया की. पिछले कुछ दिनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन हालातों से गुजरे हैं उसे देखकर ये कोई भी भांप सकता था कि पुरानी आदत कभी भी हिलोर भर सकती है. लेकिन कांग्रेस इसको नजरअंदाज करती रही. आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा सबको था. सिंधिया ने अपने परिवार की परंपरा के मुताबिक बगावत की. सोचसमझ कर कदम उठाया. और कांग्रेस से अपना तकरीबन दो दशक पुराना रिश्ता तोड़ दिया. अब अगर आज वो कहते हैं कि ये उनके जीवन का दूसरा सबसे बड़ा मोड़ है तो कुछ गलत नहीं है.