एक पखवाड़े में कांग्रेस को मालवाचंल से दो सीटों का नुकसान हो गया है. एक सीट नेपानगर की खाली हो गई है जहां से सुमित्रा देवी कासडेकर विधायक थीं. और दूसरी सीट मांधाता की खाली हुई है जहां से नारायण पटेल ने चंद ही घंटे पहले बीजेपी की सदस्यता हासिल की है. सुन तो ये भी रहे हैं कि मामला इतने पर ही खत्म होने वाला नहीं है. अभी निमाड़ के और विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. कांग्रेस के लिए तो ये खतरे की घंटी है ही. कमलनाथ के लिए ज्यादा चिंता का विषय है जो दोबारा सत्ता में वापसी की आस लगाए बैठे हैं. सियासी गलियारों में ये अटकलें है कि कमलनाथ को बीजेपी से ज्यादा नुकसान अपनी ही पार्टी के नेता पहुंचा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक हर पद पर जमे रहने की कमलनाथ की फितरत अब कांग्रेस के लिए नुकसानदायी साबित हो रही है. जिसकी वजह से पार्टी के बड़े और पुराने नेता ही उनसे दूर हो रहे हैं. जिसका खामियाजा कांग्रेस भुगत रही है. मसलन खंडवा बुरहानपुर लोकसभा सीट की ही बात ले लीजिए. बीजेपी में शामिल होने वाले पटेल अरूण यादव के कट्टर समर्थक माने जाते रहे हैं. उनके अलावा जो एक विधायक गायब बताए जा रहे हैं वो भी अरूण यादव के नजदीकी ही बताए जाते हैं. सूत्रों के मुताबिक अरूण यादव चाहते तो इन विधायकों को रोक सकते थे. लेकिन उन्होंने भी कोई खास रूची नहीं दिखाई. हालांकि आदतन इल्जाम उन्होंने भी बीजेपी पर ही लगाए.
पार्टी बचाने के काम से दूरी बनाने वजह हैं कमलनाथ. जो खुद ही सारे पद अपने पास रखना चाहते हैं. पार्टी में लंबे समय से नए प्रदेशाध्यक्ष की बात चल रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस पद पर आने का इंतजार करते करते पार्टी छोड़ गए. अरूण यादव को भी बीच में उम्मीद थी कि उन्हें दोबारा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर काबिज होने का मौका मिलेगा. लेकिन कमलनाथ ने अपने अलावा किसी और को कोई पद या जिम्मेदारी नहीं सौंपी है. जिसकी वजह से ये संभावनाएं जताई जा रही हैं कि बड़े नेताओं ने अब अपने एफर्ट्स लगाने बंद कर दिए हैं. उनकी नाराजगी इसी तरह अब पार्टी पर भारी पड़ रही है.