#CAAProtest से याद आया. छात्र आंदोलनों ने कई बार बदली है देश की राजनीति

नागरिकता संशोधन एक्ट पर छात्र सड़क पर क्या आए. पूरा देश विरोध की आग में जलने लगा. पहले जामिया मिलिया और उसके बाद सिरे से एक एक कर यूनिवर्सिटीज छात्रों के इस विरोध का साथ दे रही हैं. इतिहास गवाह है जब जब विद्यार्थियों ने सरकार की खिलाफत की है. सरकार को हिला कर रख दिया है. हिंदुस्तान में भी छात्र आंदोलनों का इतिहास बहुत पुराना है. हालांकि वो कितने सही कितने गलत ये हर बार तय करना आसान नहीं होता.
2016 में जेएनयू में अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद आंदोलन हुए. एक बयान पर कन्हैया कुमार पर राजद्रोह का आरोप भी लगा. जिसके बाद 21 छात्रों पर कार्रवाई भी हुई.
2016 में ही हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला ने फांसी लगा ली. इसके बाद देशभर में दलित छात्रों ने जोरदार प्रदर्शन किया. जिसे राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला.
2014 में जादवपुर विश्वविद्यालय में एक छात्र की पाई के खिलाफ दूसरे छात्र सड़क पर उतरे. आरोप था कि कुलपति ने पुलिस को कैंपस में आने की इजाजत दी. आंदोलन के बाद विश्वविद्यालय से कुलपति को हटा दिया गया.
2006 में आरक्षण के खिलाफ दूसरा बड़ा छात्र आंदोलन हुआ. यूपीए सरकार ने सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में भी ओबोसी आरक्षण लागू करने का फैसला लिया था.
इससे पहले जो छात्र आंदोलन हुए उनके फेहरिस्त तो खासी लंबी है. 1990 में मंडल आंदोलन हुआ. जिसके बाद वीपी सिह की सरकार ही गिर गई. 1979 से 1985 के बीच असम आंदोलन हुआ. जिसमें आम लोगों के साथ छात्र भी शामिल थे. 1975 में आपाताकाल के खिलाफ कई यूनिवर्सिटीज और कॉलेज में आंदोलन हुए. 1974 में जेपी आंदोलन हुआ. जिसमें कई छात्र नेताओं ने हिस्सा लिया. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायाल सिंह यादव ऐसे ही आंदोलन का हिस्सा भी रहे हैं.

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