1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी बस लेकर लाहौर पहुंचे. एक बस के जरिए पुराने कई विवाद मिटाने की कोशिश थी. पाकिस्तान के उस वक्त के सियासी मुखिया नवाज शरीफ भी पूरी गर्मजोशी से बाजपेयी के गले मिले. इधर दो देशों के बीच की खाइयां मिटाने की कोशिशें जारी थीं. और उधर ही कहीं इन खाइयों को और गहरा करने की साजिशें रची जा रही थीं. वो केवल बस नहीं थी एक डोर थी दो मुल्कों को जोड़ने वाली. जिसे कुछ ही महीनों में काट दिया कारगिल हमले ने. जिसकी साजिश रची थी जनरल परवेज मुशर्रफ ने. पाकिस्तान के उस वक्त के सेना प्रमुख जिन्हें शायद दो देशों के बीच ये दोस्ताना रिश्ते खास पसंद नहीं आए. कारिगल युद्ध का अंजाम क्या हुआ ये सब जानते हैं. हालांकि मुशर्रफ उसके बाद भी दावा करते रहे कि हिंदुस्तान ने जीत हासिल नहीं की बल्कि सियासी कारणों से पाकिस्तान ने अपनी सेना वापस बुलवा ली. पाकिस्तान पर आपातकाल थोपने के जुर्म में फांसी की सजा के हकदार बने मुशर्रफ के कसूर सिर्फ इतने ही नहीं है. ये वही मुशर्रफ हैं जिन्होंने सीना तान कर कहा था जो कश्मीर के लिए आतंकी है वो पाकिस्तान के लिए फ्रीडम फाइटर हैं. आगरा के शिखर सम्मेलन में भी उनके यही तेवर बरकरार रहे. इस शिखर सम्मेलन में एक बार फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने दो मुल्कों के बीच के मुद्दे सुलझाने की कोशिश की. पर बात न बन सकी. बताया जाता है कि मुशर्रफ की इस बैठक के बाद हरदम मुस्कुराने वाले बाजपेयी भी इतने तनाव में दिखे कि मुशर्रफ को विदा करने तक नहीं आए. पाकिस्तान में आपातकाल का दोषी, भारत पर कारिगल युद्ध थोपने का दोषी अब फांसी के फंदे पर झूलने वाला है.