कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के बगावती तेवरों की बातें इन दिनों सियासी हलकों में की जा रही हैं। हालांकि राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो बगावत सिंधिया खानदान में शुरू से ही है। लोगों का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के खून में भी बगावत है। राजसी खानदान से होने के कारण सिंधिया परिवार के लोग अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यही कारण था कि 1957 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकीं ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से नाराज हो कर पार्टी से बगावत कर दी थी और कांग्रेस की सरकार गिरवाकर मध्यप्रदेश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवा दी थी। विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ीं और बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शुमार हुईं। कुछ ऐसे ही बगावती तेवर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के भी थे। माधवराव सिंधिया भी पहले जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन बाद में वे अपनी मां से बगावत करके कांग्रेस में शामिल हो गए थे और 1996 में उन्होंने कांग्रेस से भी बगावत करके अपनी खुद की पार्टी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी। कांग्रेस में जिस तरह के हालात अभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बन रहे हैं कभी ऐसे ही हालात उनके पिता माधवराव सिंधिया के साथ भी बने थे। तब माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत करके अपनी खुद की पार्टी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस का गठन किया था। दरअसल हवाला घोटाले में नाम आने के बाद माधवराव सिंधिया को कांग्रेस पार्टी के भीतर ही अपने विरोधियों की साजिश का शिकार बनकर पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल और फिर कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय 1996 में माधवराव सिंधिया ने अपनी पार्टी बनाई थी जिसका नाम था मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस। माधवराव सिंधिया ने इसी पार्टी के बैनर तले ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीता भी था। हालांकि बाद में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सिंधिया ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया था। लेकिन आज जिस तरह का माहौल बन रहा है उसको देखते हुए लोगों का कहना है कि अपने खानदानी बगावती तेवर अपनाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस वाले विकल्प पर विचार कर सकते हैं।