उज्जैन में भस्मारती के दौरान महिलाओ को घूंघट लेने के लिए कहा जाता है। अब इस प्रथा का विरोध शुरू हो गया है। महानिर्वाणी अखाड़े के संत अवधेश पुरी महाराज ने इस पर आपत्ति उठाई है। सबसे पहले आपको बताते हैं उज्जैन के महाकाल मंदिर में भस्मारती की क्या परंपरा है-
महाकाल में भस्मारती की परंपरा
महाकाल बाबा उज्जैन के राजाधिराज कहे जाते हैं। महाकाल शिवलिंग स्वयं-भू है और ऐसी भी मान्यता है कि महाकाल हर वक्त यहां मौजूद रहते हैं। रोज सुबह बाबा महाकाल की भस्मारती होती है जिसमें उन्हें स्नान के बाद भस्म चढ़ाई जाती है कहा जाता है कि इसी के जरिए महाकाल को जगाया जाता है और यह जो है वो महाकाल का असली श्रृंगार है । ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान के भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती थी लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार की गई भस्म से आरती की जाती है।
महिलाएं नहीं देख सकतीं भस्मारती
बाबा महाकाल की भस्मारती में महिलाएं शामिल तो हो सकती हैं लेकिन जब बाबा को भस्म चढ़ाई जाती है तो महिलाओं को कुछ समय के लिए घूंघट करने करने के लिए कहा जाता है।
क्यों करवाया जाता है भस्मारती में महिलाओं से घूंघट?
इसके पीछे दो तर्क दिए जाते हैं – पहला तो ये कि स्नान और श्रंगार के समय माना जाता है कि देव निर्वस्त्र रहते हैं इसलिए महिलाओं को उन्हें नहीं देखना चाहिए। दूसरा ये भी माना जाता है कि पहले श्मशान की भस्म बाबा महाकाल को चढ़ाई जाती थी और महिलाओं को श्मशान से जुड़ी चीजें देखना वर्जित है। सनातन परंपरा में महिलाएं श्मशान भी नहीं जातीं।
अब आते हैं मूल बात पर कि विरोध क्या है-
तो विरोध ये है कि भस्मारती के समय महिलाओं को घूंघट क्यों करवाया जाए। महानिर्वाणी अखाड़े के संत अवधेश पुरी महाराज का कहना है कि या तो महिलाओं को भस्मारती में शामिल ही न होने दिया जाए और अगर महिलाएं आरती में शामिल हो रही हैं तो उन्हें भी पूरी आरती देखने दी जाए। घूंघट क्यों करवाया जा रहा है। जैसे पुरुषों के लिए भगवान हैं वैसे भी महिलाओं के लिए भी भगवान आराध्य हैं।
बाइट- अवधेश पुरी महाराज, संत, महानिर्वाणी अखाड़ा
क्या उज्जैन बनेगा सबरीमाला?
अवधेश पुरी महाराज की बात को अगर तूल मिलता है तो आने वाले समय में उज्जैन में भी सबरी माला जैसे विवाद शुरू हो सकता है। फिलहाल इस विरोध को हवा मिलनी शुरू हो गई है और अगर इसे महिलाओं और महिला संगठनों का समर्थन मिलता है तो बात बहुत दूर तक जा सकती है।