पुराने भोपाल की तंग गलियों से गुजकर जब आप सेंट्रल लाइब्रेरी तक पहुंचे. तो उसके बाद अब्दुल जब्बार के पास तक पहुंचने के लिए किसी पते की जरूरत नहीं पड़ेगी. राह चलते किसी भी बच्चे से, काम में मशगूल किसी भी बड़े से, पान की दुकान पर जर्दा फांकते किसी भी युवक से सिर्फ नाम भर पूछ लीजिए. वो आपको अब्दुल जब्बार के घर तक पहुंचा देगा. आज भी अगर आप ऐसा करेंगे तो जब्बार साहब के घर तक पहुंचाने में कोई गुरेज नहीं करेगा. पर अफसोस अब उस पते पर अब्दुल जब्बार कभी नहीं मिलेंगे. गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ते लड़ते जब्बार अब खुद कहीं दूर चले गए हैं. अब्दुल जब्बार यानि वो शख्स जिसकी नाक पर हमेशा चश्मा चढ़ा रहता था और आंखों से जो दिखता था वो सिर्फ गैस पीड़ितों का दर्द था. वर्ना क्या जरूरत थी लखनऊ को दिल के करीब रखने वाले एक शख्स की कि वो ताउम्र गैस पीड़ितों के हक के लिए खर्च कर दे. लेकिन जब्बार ने ये सिर्फ देखा था बल्कि सहा भी था सो इस दर्द से मुंह फेरा नहीं बल्कि गैस पीड़ितों के हर दर्द को अपना लिया. यह जब्बार के प्रयासों के कारण ही था कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपना वह निर्णय बदला, जिसमें यूनियन कार्बाइड के संचालकों को आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया था. जब्बार के प्रयासों और तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साहस से कार्बाइड के संचालकों की आपराधिक जिम्मेदारी फिर से निर्धारित की गई. जब्बार के प्रयासों से ही देश के शीर्ष वकीलों ने गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ी. कानूनी के अलावा जब्बार ने मैदानी लड़ाइयां भी लड़ीं. जिस बड़े पैमाने पर जब्बार ने गैस पीड़ितों के संघर्ष में महिलाओं को शामिल किया. वह अपने आप में एक उपलब्धि थी. शायद ही किसी जनसंघर्ष में इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं ने भागीदारी की हो.
कुछ साल पहले गैस कांड के आरोपी एंडरसन की मौत हो गई. लड़ाई काफी हद तक पूरी हो चुकी थी लेकिन इंसाफ में कुछ कमी रह गई थी. एंडरसन की मौत के बाद मुआवजे की लड़ाई आधी छूटती नजर आई. लेकिन जब्बार उम्मीद का दामन थामे रहे. जब तक जिंदा रहे गैस पीड़ितों के लिए लड़ते रहे. डायबिटीज और हार्टअटैक ने 62 साल की उम्र में दुनिया से दूर कर दिया. गैस पीड़ितों से दूर हुए हैं अब्दुल पर उम्मीद यही है कि सात आसमानों के परे जब उनकी रूह जन्नतनशीं होगी तब अगर वहां एंडरसन से मुलाकात हुई तब भी उम्मीद यही है कि वो गैस पीड़ितों के हक की ही बात करेंगे.