कमलनाथ सरकार का समय शुरू हो चुका है. देखना ये है कि ये कितना लंबा टिकता है. वैसे तो पार्टी का हर नुमाइंदा यही दावा कर रहा है कि सरकार पूरे पांच साल टिकेगी और आखिर में एक रटारटाया जुमला ऑल इज वेल. लेकिन ये वेल कितना वेल है ये कहा नहीं जा सकता. जिस तरह सीएम हाउस में मैराथन बैठकें हो रही हैं. दिल्ली से लेकर भोपाल तक की दौड़ बार बार लग रही है. उसे देखकर लगता नहीं कि ऑल इज वेल का साउंड कुछ तसल्ली दे रहा होगा. अब वो कवायदें शुरू हो चुकी हैं जो पहले हो जातीं तो शायद कांग्रेस सरकार को इन मुश्किलों का सामना ही नहीं करना पड़ता. जिसमें से एक है प्रदेशाध्यक्ष के नाम की घोषणा करना. जिस पर अब तक खुद सीएम कमलनाथ ही काबिज हैं. जिसकी वजह से पूरा सिंधिया खेमा नाराज बैठा है. दूसरी वजह है निगम मंडलों में नियुक्तियों में देरी और तीसरी बड़ी वजह है कैबिनेट में जगह न मिलने का असंतोष. पंद्रह साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के हर नेता किसी न किसी फायदे के पद की बाट जोह रहा है. जिन्हें साधे रखने की खातिर सीएम हर बार उन्हें आश्वासन देकर ही दफा करते रहे. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर हो चुका है. विपक्षी दल मलाईदार पदों का लालाच देकर बुलाने भी लगा है. अब कमलनाथ वही करने जा रहे हैं जो पहले टालते रहे. अब मंत्रिमंडल विस्तार और रिशफल की बातें हो रही हैं. सीएम अपने स्वभाव से इतर जाकर असंतुष्टों से घंटो बात कर रहे हैं. और मंत्रीमंडल में जगह देने का आश्वासन दे रहे हैं. निगम मंडलों में भी जल्द नियुक्तियां होंगी ये आश्वासन अलग है. पर अब तो असंतुष्टों को बीजेपी ज्यादा बड़े ऑफर दे चुकी है. अब कमलनाथ क्या करेंगे. क्या सरकार बचाने का जो एकमात्र रास्ता है उसे अपनाने में कमलनाथ ने देर नहीं कर दी. ये पुरानी कहावत शायद उन्हें भी अब याद आ रही होगी अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.