मध्यप्रदेश में राजा महाराजा की लड़ाई पुरानी नहीं है. ये सब जानते हैं. सत्ता के लिए ये शक्ति प्रदर्शन तो दो सौ साल पुराना है. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हरा दिया था. 1816 में हुए उस युद्ध की हार को शायद राघौगढ़ के मौजूदा राजा दिग्विजय सिंह आज तक नहीं भुला सके. उस वक्त उनके राज्य को सिंधिया राजघराने के अधीन होना पड़ा था. उस गुलामी का हिसाब बराबर करने में दिग्विजय आज भी पीछे नहीं हटते. 1993 में प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए माधव राव सिंधिया का नाम सबसे टॉप पर था. लेकिन बाजी मार गए दिग्विजय सिंह. साल 2018 के चुनाव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का सीएम बनने का रास्ता साफ था. लेकिन मौका कमलनाथ को मिला. पर अब इस दो सौ साल पुरानी लड़ाई में नया ट्विस्ट आने वाला है. जिन महाराजा की राह में राजा साहेब रोड़े बिछाते रहे. वही महाराजा अब दिग्विजय सिंह के मुकाबले चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी. ये बात अलग है कि इस राज्यसभा चुनाव में जीत दिग्विजय की भी होगी. लेकिन यूनियन कैबिनेट तक जाने का रास्ता सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए बनेगा दिग्विजय चाह कर भी कैबिनेट में न खुद जा सकते हैं. और न ही सिंधिया को रोक सकेंगे. यानि ये तो वही बात होगी कि सौ सुनार की एक लोहार की. प्रदेश की राजनीति में एक ही पार्टी में रह कर दिग्विजय सिंह बार बार सिंधिया के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे. पर अब बारी सिंधिया की है. जिनका इस राज्यसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह से आगे निकलना तय है. यानि सिंधिया राजघराना दो सौ साल पुराना इतिहास एक बार फिर दोहराने जा रहा है.
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