KP yadav का सामना करने से डर गए Jyotiraditya scindia. कहीं उपचुनाव में भारी न पड़े ये गलती.

राज्यसभा सांसद बनने और फिर मंत्रिमंडल में अपनी चलवा कर ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ अलग ही मोड में हैं. बड़ी बड़ी रैलियों को तो वो संबोधित नहीं कर सकते. लेकिन वर्चुअल रैलीज में भी उनकी ऐनर्जी लाजवाब ही नजर आ रही है. सोमवार को वो मुंगावली के कार्यकर्ताओं से वर्चुअली कनेक्ट हुए. जम कर चुनाव प्रचार करने और एक परिवार की तरह मिलकर लड़ने की नसीहत दी. पर जिस एकजुटता का सबक पढ़ा रहे थे खुद उस पर अमल नहीं कर सके. ये वर्चुअल मीटिंग मुंगावली विधानसभा सीट के कार्यकर्ताओं से थी. जहां से बीजेपी के टिकट पर बृजेंद्र यादव चुनाव लड़ेंगे. जो सिंधिया समर्थक हैं. चूंकी प्रत्याशी कांग्रेस से एक्सपोर्ट होकर आया है इसलिए परिवार की तरह काम करने की नसीहत बहुत मायने रखती है. पर बीजेपी कार्यकर्ताओं से परिवार बनने की उम्मीद रखने वाले सिंधिया खुद को बीजेपी के परिवार का हिस्सा नहीं बना पा रहे. जिसका उदाहरण है केपी यादव की अनदेखी. जिस सांसद ने सिंधिया को हराया अब वही सांसद बीजेपी को प्यारा नहीं रहा. वो भी सिर्फ सिंधिया की वजह से. एक बार पहले विधानसभा चुनाव में केपी यादव की अनदेखी कर सिंधिया उससे लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. अब फिर मूंगावली में केपी यादव की अनदेखी कर कहीं अपने समर्थक का पत्ता न कट करवा दें. मूंगावली वही यादव बाहुल सीट है जहां से केपी यादव विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन सिंधिया ने उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने दिया. नतीजे ये हुआ कि नाराज केपी बीजेपी में चले गए और वहीं से सिंधिया को शिकस्त दे दी. सिंधिया एक बार फिर वही गलती दोहरा रहे हैं. ऐसा न हो कि केपी यादव को नजरअंदाज कर वो यादव वोटबैंक को भी नाराज कर दें. हालांकि बृजेंद्र सिंह भी यादव ही हैं और अब राज्यमंत्री भी हैं. पर ये भी भूलना बड़ी गलती होगी कि केपी यादव के परिवार पर कांग्रेस की भी नजर है. ऐसा न हो लोकसभा चुनाव का इतिहास केपी यादव उपचुनाव में दोहरा दे. और सिंधिया को अपने फैसलों के चलते मुंह की खानी पड़े.
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