जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं शिवराज सिंह चौहान पर कैबिनेट गठन का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. हाल ही में कांग्रेस नेता और राज्यसभा सासंद तो राष्ट्रपति को भी पत्र लिख चुके हैं. और कह चुके हैं कि अगर मंत्रिमंडल गठन नहीं हो सकता तो क्यों न प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. उसके बाद भी सीएम ने साफ कर दिया है कि कोरोना से निपटने के बाद ही मंत्रिमंडल विस्तार होगा.
उसकी एक बड़ी वजह भी है. दरअसल इस बार मंत्रिमंडल का गठन श वराज सिंह चौहान के लिए इतना आसान भी नहीं है. इस बार उन्हें सिंधिया के गुट और बीजेपी के पुराने नेताओं में संतुलन बनाए रखना होगा. वर्ना सरकार मुश्किल में आ सकती है. सबसे बड़ी मुश्किल नरोत्तम और तुलसीराम सिलावट के बीच चुनाव करने की है. सिंधिया के कट्टर समर्थर सिलावट उपमुख्यमंत्री पद और चिकित्सा मंत्री दोनों पद के दावेदार हैं. यही हाल नरोत्तम मिश्रा का भी है. जिन्होंने कमलनाथ सरकार को कमजोर करने में शिवराज का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है. ऐसे में अहम पद देने का चुनाव करना शिवराज के लिए मुश्किल काम है. लिहाजा फिलहाल यही बेहतर है कि शिवराज ऐसे व्यस्त समय में मंत्रिमंडल के फैसले को टाल दें. वही उन्होंने किया भी है.