कबीरदास जी ने कहा है तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय…कुछ ऐसा ही ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हुआ है। सिंधिया परिवार का गढ़ मानी जाने वाली गुना-शिवपुरी सीट से सिंधिया हार गए हैं और उन्हें हराने वाला कोई गैर नहीं बल्कि साल भर पहले तक सिंधिया महाराज के सांसद प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले डॉ. केपी यादव हैं। बताया जाता है कि किसी समय केपी यादव सिंधिया का चुनाव मैनेजमेंट संभालते थे। ये भी कहा जाता है कि एक बार सिंधिया की पत्नी महारानी प्रियदर्शिनी ने केपी यादव की किसी बात पर इंसल्ट कर दी थी और इसके बाद मुंगावली में विधानसभा उपचुनाव का टिकट भी केपी यादव को नहीं दिया गया जिससे नाराज़ होकर केपी यादव ने सिंधिया को उन्हीं के गढ़ में शिकस्त देने की ठान ली और बीजेपी ज्वाइन कर ली। उसके बाद जो हुआ वो 23 अप्रेल को आए रिज़ल्ट में जाहिर हो ही चुका है। गुना से सिंधिया राज खत्म हो गया है और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी सबसे करारी हार के शिकार हुए हैं। आपको बता दें कि बीजेपी की ओर से केपी यादव को टिकट मिलने के बाद भी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने केपी यादव की एक फोटो पोस्ट करते हुए उनकी हंसी उड़ाई थी कि जो व्यक्ति कल तक महाराज सिंधिया के साथ एक सेल्फी लेने के लिए आजू-बाजू घूमता था वह उन्हें क्या हराएगा। लेकिन केपी यादव ने इतिहास रच दिया। 45 साल के केपी यादव MBBS Doctor हैं। यादव के पिता अशोकनगर में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। खुद केपी यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रहे और उनके चुनावी मैनेजमेंट को अच्छी तरह जानते थे जिसका फायदा उन्होंने उठाया और सिंधिया को हरा दिया। इन दिनों सिंधिया की एक फोटो और सोशल मीडिया पर देखी जा रही है जिसमें कहा जा रहा है कि ये सिंधिया और केपी यादव की किशोरावस्था की है हालांकि हम इस फोटो के ओरिजनल होने की पुष्टि नहीं करते। तो सिंधिया की हार को लेकर ग्वालियर से लेकर गुना शिवपुरी अशोकनगर ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश और देश भर में तरह -तरह की चर्चाएं हो रही हैं और इसको विश्वासघात से भी जोड़कर देखा जा रहा है।