संजय गांधी यानि कि इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे. जिनके लिए ये माना गया कि गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत के अगले वारिस वही हैं. क्योंकि उनके बड़े भाई राजीव गांधी तो उस वक्त तक सियासी दुनिया से बेहद दूर थे. संजय गांधी को जानने वाले उन्हें मैन ऑफ एक्शन, विजनरी और वर्कोहलिक नेता के रूप में जानते हैं हालांकि आलोचक उन्हें तानाशाह की पदवी से ही नवाजते हैं. इमेज चाहें जैसी भी हो लेकिन अपनी तैंतीस साल की छोटी सी जिंदगी में कई घटनाक्रमों से गुजरे थे संजय गांधी. कहते हैं जिस वक्त इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया उस वक्त देश की कमान संजय गांधी के ही हाथ में थी. ठीक उसी तरह जैसे सोनिया गांधी के लिए ये कहा जाता रहा है कि पीएम भले ही मनमोहन सिंह रहे लेकिन सरकार की कमान सोनिया गांधी के ही हाथ में रही. आपातकाल के अलावा संजय गांधी ने 1976 में नसबंदी कार्यक्रम चलाया. उस वक्त टारगेट पूरा करने के लिए लोगों की जबरदस्ती नसंबंदी कर दी जाती. संजय गांधी पर आपातकाल के दौरान विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी और उनके आंदोलनों को कुचलने का भी आरोप है. जग्गा कपूर की किताब में लिखे एक अंश के मुताबिक तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री आईके गुजराल पर भी संजय गांधी हावी होने की कोशिश करते रहे. जग्गा के शब्दों में वो किस्सा यू हैं कि संजय ने गुजराल को हुक्म दिया कि अब से प्रसारण से पहले सारे समाचार बुलेटिन उनहें दिखाए जाएं. गुजराल ने कहा ये संभव नहीं है. इंदिरा दरवाजे के पास खड़ी ये बातचीत सुन रहीं थीं, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. ये बातचीत कुछ ही देर में बहस में तब्दील हो गई. कहा जाता कि इसी बहस की वजह से बाद में गुजराल से सूचना प्रसारण मंत्रालय भी छीन लिया गया. पर्दे के पीछे रह कर सरकार चलाने का ये तरीका कांग्रेस में तब ही से जारी है.