नवंबर का महीना जाने को है और दिसंबर की आहट सुनाई देने लगी है. गुलाबी सर्दियों की रंगत भी जरा गाढ़ी हो रही है. शाम ढलते ढलते सर्द हवा ठिठुरने पर मजबूर कर रही है. कभी कभी कोहरा भी नजर आता है. कुछ ऐसी ही धुंध आज से पैंतीस साल पहले भी भोपाल के आसमान पर छाई थी. 35 साल पहले भोपाल की हवा में घुला था जहर. जहरीली गैस का धुआं मौत का कुहासा बन कर भोपाल को धीरे धीरे अपने आगोश में ले रहा था.