एक ही गलती के बाद आ गई Scindia को अक्ल, हेकड़ी भूल कर सुधारी गलती!

मैंने खुद को बीजेपी को सौंप दिया है. मुंगावली के कार्यकर्ताओं के बीच कल ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़े गुरूर से ये बात कही थी. और भी कई बड़ी बड़ी बातें कहीं. लेकिन सुर्खियां बटोर ले गए केपी यादव. जो मुंगावली से हैं और गुना शिवपुरी सीट से सांसद भी. लेकिन सिंधिया जी ने इस सभा में केपीयादव को याद करना जरूरी ही नहीं समझा. बस कांग्रेस को ये मुद्दा याद रह गया. ऐसी किरकिरी हुई कि सिंधिया का सारा गुरूर एक ही दिन में चूर चूर हो गया. इस एक ही मीटिंग के बाद सिंधया को समझ आ गया कि वो राज्यसभा सांसद जरूर बन चुके हैं लेकिन लोकसभा के सांसद नहीं है. और उस क्षेत्र में लोकसभासांसद की अनदेखी कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने की जगह उन्हें डरा भी सकती हैं. भई जिस मीटिंग में सिंधिया ये बोल रहे हैं कि अब वो सब एक परिवार हैं. वहां खुद ही परिवार के एक सदस्य की अनदेखी को कैसे जस्टिफाय किया जा सकता है. शायद सिंधियो को भी ये बात समझ आ गई. गनीमत है कि सिधिया एक ही ठोकर खा कर सुधर गए. और समझ गए कि वक्त खराब हो तो अकड़ कर काम नहीं चलता. अभी जिस पार्टी को बड़ी ठसक के साथ ज्वाइन किया है. उस पार्टी में अपने समर्थकों को जिताना भी जरूरी है. इसलिए अकड़ कर एकला चलो से बेहतर होगा कि सब के साथ चलो. बस ये गूढ़ ज्ञान मिला और अगली ही वर्चुअल रैली में सिंधिया ने अपनी गलती सुधार ली. मुंगावली के बाद मंगलवार को अशोकनगर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में केपीयादव को भी आमंत्रित किया गया. और उन्हें पूरा स्क्रीन स्पेस भी दिया गया.
एम्बियेंस
चलो अच्छा है कि सिंधिया सुधर गए. वर्ना जो असंतोष उभरना था उसे संभालते संभालते शायद बीजेपी थक जाती. और सिंधिया अपने ही समर्थकों के लिए मुश्किल की जड़ बन जाते.
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