मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर कमलनाथ का एक साल एक मई को पूरा हो गया है। कांग्रेस कार्यकर्ता जश्न मना रहे हैं। कमलनाथ भी काफी खुश हैं क्योंकि इस एक साल के दौरान उनके खाते में काफी सारी उपलब्धियां दर्ज हुई हैं। जब कमलनाथ पीसीसी अध्यक्ष बने थे तो प्रदेश में कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं थी, कार्यकर्ताओं का मॉरल काफी डाउन था और प्रदेश में सरकार बनाने की बात तो किसी ने सोची भी नहीं थी। कमलनाथ के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं था लेकिन पाने के लिए सब कुछ था। उन्होंने छिंदवाड़ा में पिछले चालीस सालों के जीत के अपने अनुभव और मैनेजमेंट का इस्तेमाल किया और नतीजा सबके सामने है। सबसे बड़ी बात ये रही कि कांग्रेस का एमपी में पंद्रह सालों का वनवास खत्म हुआ और कांग्रेस की सरकार बनी खुद कमलनाथ सीएम बने वहीं प्रदेश में हाशिये पर चल रही कांग्रेस में मजबूती आई और कई पार्टियों के नेता कांग्रेस में शामिल हुए ही कांग्रेस के बागी भी वापस कांग्रेस में लौट आए। एक और बात उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में जो तीन या चार शक्ति केंद्र थे वो अब सिमटते नजर आ रहे हैं और सिर्फ कमलनाथ वन मैन शो करते नजर आ रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति के दिग्विजय और सिंधिया गुट अब उतने शक्तिशाली नहीं बचे बल्कि कहा जाए कि कमलनाथ ने पीसीसी चीफ बनते ही शक्ति का केंद्र खुद की तरफ मोड़ने पर काम किया और इसमें सफल भी रहे। कांग्रेस हाई कमान में भी उनकी साख बढ़ी वहीं मंत्रिमंडल में अपने लोगों को रखने, टिकट बांटने जैसे कई मुद्दों पर कमलनाथ का अपर हैंड ही नजर आया। कुल मिलाकर देखा जाए तो पीसीसी चीफ के रूप में कमलनाथ खुद भी सशक्त हुए हैं और उनके नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस भी पहले के मुकाबले कई गुना सशक्त हो गई है। अगर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को आठ से दस सीटें मिलती हैं तो ये भी कमलनाथ के नेतृत्व का ही कमाल माना जाएगा और वे MP या मध्यभारत के सबसे शक्तिशाली कांग्रेस नेता के रूप में उभरकर सामने आएंगे।