मजबूरी ही सही लेकिन गोपाल भार्गव को वो काम करना पड़ रहा है जो वो कभी करना नहीं चाहते थे. बेमन से बेबसी से चाहें जैसे भी वो, वो काम कर रहे हैं जिसे करने का शायद उनका जमीर उन्हें कभी इजाजत नहीं देता. पर आलाकमान का हुक्म है तो बजाना ही पड़ेगा. इस उम्र में सिंधिया भी बन पाना मुश्किल ही तो है. इसलिए अब बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता, वरिष्ठ विधायक और कैबिनेट में अहम विभाग पाने का हक रखने वाले नेता गोपाल भार्गव ने भी मोर्चा खोल ही दिया है. इस अंदाज में कि चलो जो होगा देखा जाएगा. इसीके साथ गोपाल भार्गव सुरखी विधानसभा में जमकर गरजे. मोर्चा खोला पुरानी कमलनाथ सरकार और कांग्रेस के खिलाफ. एक एक वादा याद दिलाया जो 2018 में चुनाव जीतने लिए कांग्रेस ने किया था लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल गई. और ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के बड़प्पन और कुर्बानी के कसीदे काड़े. क्योंकि यही तो वो लोग हैं जिन्हें बेहद मजबूरी में कांग्रेस छोड़ना पड़ी ताकि जनता को उनका हक मिल सके.
एम्बियेंस- अगर निकल सके तो
अब ये तो भार्गव की मजबूरी ही है कि जिसे जीता हुआ देखना नहीं चाहते. उसके पक्ष में खड़े हो कर भाषण देने पड़ रहे हैं. और बड़ी बड़ी बातें करनी पड़ रही हैं ताकि मतदाता रीझ जाए और बीजेपी की सरकार कायम रहे.
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