किसान का बेटा, प्रदेशभर की बच्चियों का लाड़ला मामा एक बार फिर सत्ता में लौट आया है. ये वही पहचान है जो शिवराज सिंह चौहान ने पिछले तेरह सालों में कमाई है. वो कहते हैं न बॉय नेक्सट डोर. वैसे ही वो नेता हैं पर लगते हैं नेक्स्ट डोर नेबर ही. शायद यही अपनापन रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में जनता बीजेपी से खफा हुई लेकिन शिवराज को नकार नहीं सकी. और अब एक बार फिर शिवराज सत्ता में पुरजोर वापसी कर रहे हैं. लेकिन कुर्सी तक का ये सफर शिवराज के लिए इतना आसान नहीं रहा. 29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले शिवराज के सियासी सफर का आगाज आरएसएस से हुआ. 1972 को शिवराज आरएसएस में शामिल हुए. विदिशा से पांच बार सांसद रहे. इसके अलावा बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. साल 2004 में गठित कृषि समिति, लाभ के पदों के विषय में गठित संयुक्त समिति के सदस्य रहे. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, बीजेपी के संसदीय बोर्डक सचिव, केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव, नैतिकता विषय पर गठित समिति के सदस्य, लोकसभा आवास समिति के अध्यक्ष रहे. पर सत्ता के करीब पहुंचने की असल शुरूआत 20005 से ही हुई. तब उन्हें महज तीन साल का कार्यकाल मिला. इसके बाद जब 2008 में चुनाव हुए तो शिवराज ने जोरदार जीत हासिल की. लगातार दूसरी बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी. 2013 में भी जीत का सिलसिला जारी रहा. अब तक शिवराज खुद को सियासी इतिहास में तब्दील कर चुके थे. और एक और नया इतिहास गढ़ने की तैयारी में थे. उनके नेतृत्व में लगातार तीसरी बार बीजेपी ने प्रदेश में जीत हासिल की. लेकिन 2018 में हुए चुनाव में इस जीत पर रोक लग गई. महज कुछ सीटों से बढ़त लेकर कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बना दी. ये सरकार बमुश्किल डेढ़ साल चल सकी. और सियासी भूचाल के साथ गिर गई. जिसके बाद प्रदेश में चौथी बार वापसी हो रही है शिवराज सिंह चौहान की. जो अपनेआप में एक रिकॉर्ड है.